शेर
[8/2 00:06] Geetesh dubey ” GEET “:
??चंद शेर ??
निकले थे घर से, तेरी जुस्तजू को हम
तेरे पैकर मे सिमटकर खुद ही गुम हो बैठे । १
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महज़ मुस्कुराहटें ही नही कुबूल हमको
तेरी रुसवाइयों पर भी हँस लिया करते हैं । २
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पाने को इन आँखों मे ख्वाहिश अभी बाकी है
या तो वो पैमाना है या कि फिर साकी़ है । ३
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वज़ह पूछोगे तो बता न सकेंगे तुमको
बेवज़ह ख़ता करने की आदत है हमको । ४
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लो जाने लगा हिज्राँ खिजा़ओं का मॊसम
समाने लगी नफ़स मे खुशबू ए रिदाए गुल । ५
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चाहतों का सिलसिला कुछ थम सा गया है
शायद इंसां मे ख़ुदा कुछ कम सा गया है
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हमसे मिलना तो नीयत साफ़ रखना ज़नाब
वरना ख्वाबों से तसल्ली कर लेना ॥
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ये आँसू भी बडे बेवफ़ा होते हैं
हम तो पहले ही खोये थे
सनम की जुदाई मे
ऒर ये आँखों से जुदा होते हैं ।
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तोड़ने लग गईं दम मेरी सिसकियाँ
मुहब्बतों का सफ़र अब न बाकी रहा
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उतरा है उजाला फ़लक से जमीं पर
जैसे कोई चमका हो नूर तेरे चेहरे का
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वो रंगत वो शोखी वो बिखरे नजारे
जैसे खिलखिलाता हुआ अक्स तेरे चेहरे का
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यूं न ताका करो आसमाँ की तरफ
बादल भी उमड़ सकते हैं
नज़र छिपाकर रखना जमाने से ” गीत ”
दोनो ही बरस सकते हैं ।
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कहते रहे ता उम्र लेकिन
कुछ समझ पाये न तुम
खामोशियाँ लब पर रखीं
तब सुनने की जिद कर रहे…..
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इक रोज ये कहा था नज़र आयेंगे तुम्हे
आँखे गड़ाये बैठे थे हम फिर आँख लग गई ।
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चंद शेर
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जुस्तजू मे तेरी चौराहे पे आ खड़े
खबर भी तो हो वो डगर कॊन सी है
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तू मिले न मिले जो तू मुनासिब समझे
पर मिलने को मना करने के बहाने मिल ले
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याद आती भी तो इस तरह तेरी
जैसे भूला हो कोई सांसें गिनकर
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क्या करियेगा ज़नाब
ज़ख़्म- ए- दिल देखकर
ये नज़्र- ए- यार है
तमाशा नही कोई
” गीत “✍?