शेर
नफरतों को मत पालिये दिलों में
जगह बहुत कम है क्यों ज़ाया करें
प्रेम के ढाई है नफरत के हैं चार
अक्षरों को भी क्यों कर ज़ाया करें
बहुत आसान है डगर नफरतों की
मगर इसमें कोई मोड़ आता नही
प्रेम की राह में मुश्किलें हैं बहुत
जिस से हो जाय वो कभी जाता नही
नफरतों की राह में मोड़ वो ढूँढ़िये
जहाँ पर प्रेम हो एक नई शुरुआत हो