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17 Oct 2016 · 1 min read

शेर

वफ़ा का दर्द ज़बाँ से बयाँ नहीं होता।
ये ऐसी आग है जिस का धुँआ नहीं होता।

बस एक दर्द सा महसूस होता रहता है।
नज़र की चोट का दिल पे निशाँ नहीं होता।

सफ़र ये हिज्र का कटता न जाने फिर कैसे।
तुम्हारी याद का गर सायबाँ नही होता।

हमीं ने खून से लिख्खि है दासतान ए चमन।
पर आज इस में ही अपना बयाँ नहीं होता।

मोहसिन आफ़ताब केलापुरी

Language: Hindi
Tag: शेर
332 Views

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