शेर
लाल माँ के मार दीये कायरों से आज फिर
छीन ली मुसकाँ जवानों के घरों से आज फिर
गोद माँ की छोड़ कर जो इस जहाँ से अब चले
बीतती दिल पर पूछे क्या औरतों से आज फिर
तुम सबक इन जालिमों को क्यों सिखा देते नहीं
वार छिप करते पुछे इन बुजदिलों से आज फिर
चुन कमीनों को सजा दें फंदे पर लटका अभी
छोड़ शान्ति अब ले बदला मुश्किलों से आज फिर
डॉ मधु त्रिवेदी