विछोह की वेदना
हमें उम्मीद थी बुझे चिरागों को रोशन कर देंगे
अंधेरों से तुम निकल ना पाओगे ये पता न था
हमें उम्मीद थी डूबती कश्ती को किनारा मिलेगा
बीच मझधार दामन छोड़ जाओगे ये पता न था
हमें उम्मीद थी तुमसे फिर एक मुलाकात होगी
रूठ कर दूर बहुत निकल जाओगे ये पता न था
हमें उम्मीद थी पूरे होंगे वादे साथ निभाने के
वादों पे खरे ना उतर पाओगे ये पता न था
हमें उम्मीद थी हम भी ये दुनिया छोड़ देंगे मगर
जन्नत के दरवाजे खुले ना होंगें ये पता न था
हमसफर साथ छोड़ चला जाता है दूर कहीं तो
बर्दाश्त नही होता बिछड़ने का गम ये पता न था
किसी के कोरोना से जीवन साथी के बिछुड़ने पर ……..
वीर कुमार जैन
26 अगस्त 2021