शेर
रिश्ता निभाना आसान था पर निभा नही पाए
हमने चाहा उन्हें बुलाना पर वो नही आए
उनकी इन्तज़ार में गुजर गए दिन और रात
कोरोना के कारण हम भी कहीं जा नही पाए
मझधार में डूबती उतराती रही जीवन की नैया
काश के डूबती इस नाव को किनारा मिल जाय
जवानी के दरवाजे पर जब उसने दस्तक दी
खूबसूरती का समंदर हो और वो डूब कर आये
जाम लिए इंतजार करते रहे साकी का रात भर
तेरे मयखाने से हम यूँ ही प्यासे निकल आये
वीर कुमार जैन
29 जुलाई 2021