शेर..यथार्थ का बोध*
***स्वीकार किया है हमने,
उसका नाम ताकि थोप सके,
अपनी बुराई उसके नाम,
खुद जिम्मेदारी लेने में बड़े झंझट है,
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चिंतन है मानव की एकमात्र पहचान,
बुढ़ापा नहीं कोई अपाहिज़ पड़ाव,
जो नहीं कर पाएं चिंतन,
अब बुढ़ापे में है,व्यर्थ ही परेशान,
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जीवन के आखिरी छोर का नाम है मौत,
आदमी उसी को कबूल नहीं करता,
इसलिए “परेशानी के निशान”का नाम है जिंदगी,
Mahender Singh Author at Sahityapedia webpage.