शेरो ए शायरी
ख़ुमारीयत-ए-ई इशक ऐसा की?
दूर रहकर भी, अब जीने नहीं देती?
तेरी नजरों की नाज़ीर ही कुछ ऐसी,
की ज़ुल्फों से शराब अब क्यूँ पीने नहीं देती?
शायर ©किशन कारीगर (copyright)
दौलत की खातिर, तू क्या कुछ नही करता?
इंसा ही, इंसानियत की बातें क्यूँ नही सीखता?
शायर©किशन कारीगर (copyright)
यूँ तो झूठे हमदर्द कई?
बेतरकीब हर कहीं मिल जाते,
दुख की दूपहरी धूप मे, है कौन साथ?
बस यही ख्यालात, दिल को छू जाते.
शायर © किशन कारीगर