शेरो ए शायरी
ओ बेखबर मेरे रहगुजर देख ज़रा
दिल ने दस्तक दी न जाने कब किधर |
तेरी मुस्कुराहटों के अफसाने देखे थे हज़ार हमने
गली गली ढूंढता हूँ तुझे कभी इधर कभी उधर ||
क्या ताउम्र कभी कोई पीता है शाकी
गमें दिल तू ही बता क्या तू भी रोता है कभी ?
महबूब की मुस्कुराहटों के बरसात में भीगता रहूँ ताउम्र
सपने संजोये थे “किशन” ने पहली मुलाक़ात में इधर ही कहीं ||
दिल में उम्मीद लिए बैठा था
की आपसे मुलाक़ात होगी |
और खुदा ने चाहा
आज मुलाक़ात हो गयी ||
नफरतों की आग में झुलस घर मेरे घर उनके भी
पर किस किस को बताऊँ सूनी हो गयी आँगन न जाने कितनो की |
कहता है “किशन” अब हर किसी से यही
इंसानियत से बढ़कर दूजा कोई मज़हब नहीं ||
ग़मों के दौर मुझपे आते रहे
जुदा होकर भी मिलने की फ़रियाद करे |
क्या पता कल मैं ही न रहूँ पर खुदा करे
सबके दिल में “किशन” की याद रहे ||
माँ जब तूं चलि जाएगी उस देश को
जहाँ से लौटा है न कभी कोई अपनों के पास |
मासूम ये दिल किशन का फिर भी यही कहेगा
तेरी सूरत न परछाई ही सही एक पल को आ जाती मेरे पास
शायर- किशन कारीगर
(©काॅपीराइट)