शृंगार छंद
शृंगार छंद- यह एक लालित्यपूर्ण छंद है। इस छंद में भाव नदी की धारा के समान कल-कल निनादित होता हुआ प्रवाहित होता है। यह एक सोलह मात्रिक छंद है। इस छंद के आरंभ में त्रिकल और द्विकल तथा चरणांत में त्रिकल का प्रयोग अनिवार्य है। चार चरणों के इस छंद में दो चरण सम तुकांत होने चाहिए।अंतिम त्रिकल में दीर्घ लघु ( ऽ ।) अनिवार्य होता है।
उदाहरण
जहाँ पर निर्मल भाव प्रवाह,
निनादित होता उर का दाह।
वहीं है मधुरिम कविता कोश,
सभी को ले ले निज आगोश।।
भरे जब सत्य भाव हुंकार,
लेखनी चलती कर विस्तार।
जलधि सम उमड़ें नित्य विचार,
कल्पना करती तीखी धार।।
बहें कर कल – कल सारे छंद,
परिष्कृत भाषा भाव अमंद।
पिलाए सरस रूप मकरंद,
कामिनी सम देकर आनंद।।
लगे जो पतझड़ में मधुमास,
जगाए पिया मिलन की आस।
करे नित उर में नव उद्भास,
वही है कविता प्यारी खास।।
जहाँ पर वैभव वाग्विलास,
उष्ण कर दे हर उच्छ्वास।
सरलता मन को लेती मोह,
करे मन विगलित भाव बिछोह।।
वही है अच्छा सुन्दर काव्य,
बात जो करता है संभाव्य।
निराशा में भी करे प्रकाश,
उड़े मन पक्षी पढ़ आकाश।।
मर्मरित करती है परिवेश,
मिटाती उर का भावावेश।
संतुलित करती हर आचार,
सिखाती कविता जीवन सार।।
करें हम नित ऐसी अभिव्यक्ति,
मिटा जो द्वेष भरे अनुरक्ति।
सुखी हो ये जगमग संसार,
स्वप्न हर सबका हो साकार।।
-डाॅ बिपिन पाण्डेय
शृंगार छंद (गीतिका)
मचा है जग में हाहाकार।
राम जी आकर लो अवतार।।1
घूमते राक्षस हैं चहुँओर,
करें जो मिलकर पापाचार।।2
आस बस तुमसे मेरे राम,
हृदय का मेटो सब अँधियार।।3
शरण में ले लो अपना मान,
चाह हो जग से अब उद्धार।।4
करूँ मैं कैसे हे प्रभु ध्यान,
लुभाती माया बारंबार ।।5
सत्य से हुआ पूर्ण मैं भिज्ञ,
नहीं है जग में कोई सार।।6
अहर्निश करूँ आपकी भक्ति,
करा दो मुझको भव से पार।।7
बुला लो मुझको भी निज धाम,
नहीं तो ठानूँगा मैं रार।।8
– डाॅ. बिपिन पाण्डेय
डाॅ बिपिन पाण्डेय