शून्य
शून्य रिक्त होता मगर,है अनंत के तुल्य ।
जुड़ता जिसके साथ है, बढ़ता उसका मूल्य।। १
छुपा शून्य में ज्ञान का, बहुत बड़ा भंडार।
अनंत-अपरिमीत रहा, निरूपित निराकार।। २
होता बिल्कुल ही नहीं, शून्य का ओर-छोर।
शुरूआत कर शून्य से, चल अनंत की ओर।। ३
इक अजीब सा सुख यहाँ, करता भाव विभोर।
इक अनोखी दुनिया चले, पकड़ शून्य की डोर।। ४
-लक्ष्मी सिंह