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22 May 2023 · 1 min read

शून्य शून्य सा लगता है

शून्य शून्य सा लगता है

बिन तेरे मेरे हरदम
सावन भी पतझड़ लगता है
लोगों से मिलना जुलना भी
बेमानी सा लगता है

दो चार कदम आगे बढ़कर
ना जाने क्यूँ रुक जाता हूँ
जिस राह पर तेरा दर ना हो
जाना भी दूभर लगता है।

निर उद्देश्य सा आज तलक
मैं वन उपवन में भटका किया
पल भर भी अब तेरे बिन
जीना मुश्किल सा लगता है
आ जाओ दिलबर अब तुम बिन
सूना सूना जीवन है
अस्तित्व मेरा मुझको प्रिए
शून्य शून्य सा लगता है।

संजय श्रीवास्तव
बालाघाट म प्र

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