बाट तुम्हारी जोहती, कबसे मैं बेचैन।
मैं नारी हूं, स्पर्श जानती हूं मैं
ग़ज़ल _ दर्द भूल कर अपने, आप मुस्कुरा देना !
हवा तो आज़ भी नहीं मिल रही है
क्या कहें कितना प्यार करते हैं
परम प्रकाश उत्सव कार्तिक मास
खुदा किसी को किसी पर फ़िदा ना करें
अपने आप से भी नाराज रहने की कोई वजह होती है,
तुम आओ एक बार
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
मेरी नजरो में बसी हो तुम काजल की तरह।
राम कृष्ण हरि
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
जिस दिन आप कैसी मृत्यु हो तय कर लेते है उसी दिन आपका जीवन और