जहां प्रगटे अवधपुरी श्रीराम
तू ने आवाज दी मुझको आना पड़ा
अधूरी रह जाती दस्तान ए इश्क मेरी
ख़ुदकुशी का एक तरीका बड़ा जाना पहचाना है,
पूरा कुनबा बैठता, खाते मिलकर धूप (कुंडलिया)
ज़िन्दगी जीने की जद्दोजहद में
" पाती जो है प्रीत की "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
हारा हूं,पर मातम नहीं मनाऊंगा
कभी जिस पर मेरी सारी पतंगें ही लटकती थी
बहती नदी का करिश्मा देखो,
रिश्तों में झुकना हमे मुनासिब लगा
एक दिया बुझा करके तुम दूसरा दिया जला बेठे
आज़ाद पैदा हुआ आज़ाद था और आज भी आजाद है।मौत के घाट उतार कर
जो जुल्फों के साये में पलते हैं उन्हें राहत नहीं मिलती।
ज़िंदगी ने अब मुस्कुराना छोड़ दिया है
हर तरफ बेरोजगारी के बहुत किस्से मिले
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
"अंधविश्वास में डूबा हुआ व्यक्ति आंखों से ही अंधा नहीं होता
डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया कुंदन