मैं अंतिम स्नान में मेरे।
सुकुमारी जो है जनकदुलारी है
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
हिसाब हुआ जब संपत्ति का मैंने अपने हिस्से में किताबें मांग ल
आइना देखा तो खुद चकरा गए।
आखिर इतना गुस्सा क्यों ? (ग़ज़ल )
मासुमियत - बेटी हूँ मैं।
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
खेत खलिहनवा पसिनवा चुवाइ के सगिरिउ सिन्वर् लाहराइ ला हो भैया
ज़रूरी नहीं के मोहब्बत में हर कोई शायर बन जाए,
आज का इंसान ज्ञान से शिक्षित से पर व्यवहार और सामजिक साक्षरत
तेरी याद दिल से निकाली नहीं जाती
मुझसे जुदा होने से पहले, लौटा दे मेरा प्यार वह मुझको
तुम्हारे जैसे थे तो हम भी प्यारे लगते थे
वेदनाओं का हृदय में नित्य आना हो रहा है, और मैं बस बाध्य होकर कर रहा हूँ आगवानी।
ज़िंदगी कच्ची है सब जानते हैं
गजल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD