"आक्रात्मकता" का विकृत रूप ही "उन्माद" कहलाता है। समझे श्रीम
फ़लसफ़ा है जिंदगी का मुस्कुराते जाना।
ज़िम्मेदारी उठाने की बात थी,
*सो जा मुन्ना निंदिया रानी आई*
ये इश्क भी जुनून हैं,मुकाम पाने का ।
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
रमेशराज के मौसमविशेष के बालगीत
अपना सम्मान हमें ख़ुद ही करना पड़ता है। क्योंकी जो दूसरों से
मन के बंद दरवाजे को खोलने के लिए
कभी वो कसम दिला कर खिलाया करती हैं
"" *हे अनंत रूप श्रीकृष्ण* ""
मेरी किस्मत पे हंसने वालों कब तलक हंसते रहोगे
अगर शमशीर हमने म्यान में रक्खी नहीं होती
स्वयं को संत कहते हैं,किया धन खूब संचित है। बने रहबर वो' दुनिया के
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
*हटता है परिदृश्य से, अकस्मात इंसान (कुंडलिया)*
*अब न वो दर्द ,न वो दिल ही ,न वो दीवाने रहे*