चाहतों की सेज न थी, किंतु ख्वाबों का गगन था.....
अन्तर मन में उबल रही है, हर गली गली की ज्वाला ,
बोलने को मिली ज़ुबां ही नहीं
वेतन की चाहत लिए एक श्रमिक।
गंगा- सेवा के दस दिन..पांचवां दिन- (गुरुवार)
" हर वर्ग की चुनावी चर्चा “
क्या ये किसी कलंक से कम है
गाँधी हमेशा जिंदा है
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
एक ही आसरौ मां
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
तुझे खो कर तुझे खोजते रहना
फांसी का फंदा भी कम ना था,
🥀*अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
I want to have a sixth autumn
प्रिये
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
अगर कभी किस्मत से किसी रास्ते पर टकराएंगे
कंधे पे अपने मेरा सर रहने दीजिए
*सत्पथ पर यदि चलना है तो, अपमानों को सहना सीखो ( राधेश्यामी
बहुत सोर करती है ,तुम्हारी बेजुबा यादें।