शुक्रिया पेरासिटामोल का…! ❤
मैने कई बार तुमसे कहा है डीअर…
चाय ठीक से बनाया करो चाय तक बनानी नही आती तुम्हें
क्यु हर बार खालिस पत्ती डाल के एक उबला लगाते हो
हालांकि तुम अच्छी चाय बनाते हो पर उस दिन वाली का क्या कहना,,
आह हा हा,
चाय से परहेज नही मुझे पर न जाने क्युं अच्छी नहीं लगती अब,
शायद तुमने मिठास ना मिलाई हो, या फिर बे-मन से बनाई हो
मै ऐसा सोच ही रही थी की तभी दूसरे कमरे से जोर से मेरी सास ने आवाज आई…
लाल्ली(वेस्ट यू पी में बेटी, बहु, बहन के लिए स्नेह से प्रयोग होने वाला शब्द) सुन ना चाय बना ले.
मैं बेड से उठी और 2 कप चाय का पानी खोलाने रख दिया…
और फिर पत्ती, अदरक, इलाईची, कूट के डाल दिये, और चीनी भी
एक निश्चित समय तक खोलाने पे भी वो खुशबू आज तक वापस नहीं आई जो तुमने पहली बार खालिश पत्ती की बनाई थी
ना जाने वो किसका कमाल था चाय की पत्ती का, तुम्हारे हाथों का, या फिर पहली सी मोहब्बत का,,
न जाने वो कोन सा वो जादू था जो दिल और दिमाग पे सर कर गया था,,
आज भी गर चाय पीती हूँ तो तुम्हारी बहुत याद आती है.
क्या कभी वो पहली सी चाय पिलाओगे?
जो मेरे जहन से नही जाती,
मेरी तो पेरासिटामोल थी वो.
एक घुट पीते ही सारे बदन मे जान डाल देती थी..
शुक्रिया पहली चाय का..
जो आज तक नही कर पायी!
सच तो कहा था तुमने भुला न पाऊँगी तुम्हें..
मुद्गल…