शीर्षक-“यादगार गाँव (संक्षिप्त कविता)
कहीं तो भी सपनों में खो गया है मेरा गांव,
वह गरमी के मौसम में ढंकने वाले घर की शीतलता भरी छांव,
सावन की गाथाएं और अन्य तीज त्यौहार के भीतरी भाव,
याद आती है हमेशा नदी में बहने वाली कागज की नाव,
आत्मा को शीतलता देने वाला मिट्टी के घड़े का ठंडा जल बुझाए प्यास अहंभाव,
त्यौहारी बाजारों से है समृद्ध मेरा गाँव,
दादी-नानी की कहानी सुनकर आने वाली मीठी नींद और उन मीठे सपनों के सुनहरे झोखों में खोई हुई आंचल में पीपल की छांव,
मेरे साथ अब भी है बरकरार मीठी यादें और यादगार मामा का गाँव||
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल