शीर्षक- *मजदूर*
शीर्षक- मजदूर
हाँ मैं मजदूर हूँ
दो रोटी के लिए मजबूर हूँ
नहीं दया का मैं पात्र हूँ
मैं मेहनत करता दिन-रात हूँ
आज मेरा दिवस है
मैं भी व्यक्ति एक मशहूर हूँ।
मेरी गरीबी पर ना तुम
मेरा मजाक उड़ाओ
मैं अनदेखा कर दूँ काम तुम्हारा
और एक पहर नजर ना आऊँ
मैं चाहूँ तो तुमको
दर-दर भटकाऊं
पर यह मेरी इंसानियत नहीं
कि मैं तुमको तड़पाऊ।
हर पल देखा खुद को रोते
अश्रु का ना कोई मोल यहाँ
कड़ी धूप में भी करता मेहनत
छाँव सा ना कोई दोस्त यहाँ
मंजिले पर मंजिले बनाता रहता हूँ
पर अपनी मंजिल की ना
कोई भी राह यहाँ।
हरमिंदर कौर,( अमरोहा उत्तर प्रदेश)