“शीर्षक-“भार ” (22)
किसी भी काम को करने से पूर्व ही
बिल्कुल भी भार मत समझो जनाब,
गर करते हो बेतहाशा मोहब्बत जिंदगी से बखूबी
तो रूचि लेकर नया मोड़ दे हर काम को और पहुंचाएं अंजाम तक
यकीनन रंग लाएगी मेहनत ज़रूर,मिलेगी मंज़िल नायाब,
मत कोस यूं वक्त को
जलाकर मशाल आत्मविश्वासी आंतरिक शक्ति की जोत,
ठान लें मन में किसी भी काम को समय पर पूर्ण करने की ओत,
पारिवारिक रिश्तों की मिठास को रख बरकरार
न रख दिल पर कोई बोझ और न ही किसी प्रकार का भार,
अपनेपन के फूलों की माला पहनाकर बिखेरते चल
रंगबिरंगी खुशबुओं का प्यार||
आरती अयाचित
स्वरचित एवं मौलिक
भोपाल