शीर्षक: पापी मन
शीर्षक: पापी मन
मन क्या है एक पंछी है
इत उत डोल रहा है
उडने को ऊंची उड़ान
देखो कैसे मचल रहा है।
छल कपट से दूर हृदय
धवल श्वेत अंबर जैसा
रख शीष प्रभु के दर पर
दुआ में सबकी हाथ उठा रहा है।
पापो की गठरी से ना कोई नाता
पुण्य का भार उठा रहा है
कलयुग में सतयुग की
चाह रखकर
बेड़ा अनमोल उठा रहा है।
पापी मन कब काला हो जाए
यही सोच घबरा रहा है
अपने कर्मों को धुलने की खातिर
गंगा हरिद्वार वह नहा रहा है।
हरमिंदर कौर
अमरोहा यूपी