शीर्षक – घुटन
शीर्षक – घुटन
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सच तो हम सभी की जिंदगी में सच घुटन महसूस भी होती हैं। अब घुटन के शब्दों पर हम सोचे तब घुटन एक मौसम की जरूरत से भी हो सकती हैं। और सच आज की कहानी घुटन के किरदार आप और हम बस यही एक सच और सही है।
आप हमसे कहता है चलो आज कहीं दूर घूमने चलते हैं हम इस पर जवाब आपसे कहता है कहां चलना है तब आप कहता है आओ किसी हम रेस्टोरेंट में एक कप कॉफी पीते हैं इस पर हम बहुत खुश होता है और आपके साथ चलने के लिए तैयार हो जाता है परम हम और आपकी शादी की 22 साल बीत चुकी है पर कोई संतान सुख नहीं मिल पाया बस आपको तो कोई समस्या नहीं थी जीवन में जो होता है वह कुदरत के साथ उसे मंजूर था परंतु हम के जीवन में कहीं ना कहीं घुटन थी कहीं ना कहीं सोच थी और इसी सोच और घुटन के बीच हम ना जाने इस 22 वर्षों की जिंदगी में कितनी बार जीवन में घुटन के साथ जीवन जिया होगा।
आप हम को देखता है और सोचता हैं। फिर धीरे से आवाज में कहता है अब देर ना करो तैयार भी हो जाओ तब हम अपने कपड़े लेकर तैयार होने चले देती हैं। और आप भी तैयार हो जाता है। घर से दोनों हाथ में हाथ डालकर निकल ही रहे थे पीछे से आप की मां की आवाज आती है। बेटा हमारा खाना बना दिया क्या आप कोई छोटा सा उत्तर देता है और किचन में रखा है और हम दोनों आज बाहर जा रहे हैं।
हम दरवाजा खोलकर आपके साथ बाहर आ जाती और आप और हम दोनों एक दूसरे से सड़क पर बातें करते हुए। चल रही कुछ बीते लम्हें 22 वर्षों की हम कह रही है और आप उसकी सहमति में उत्तर दे रहे हैं बस आज कुछ घुटन है तो परंतु शायद हम जब चार दीवारी से बाहर निकल आते हैं। घुटंक कुछ देर के लिए हमसे दूर चली जाती हैं।
और बातें करते-करते आप और हमको मालूम ही नहीं चला की कब वह काफी के रेस्टोरेंट पर पहुंच गए और आप ने गेट खोला हम से कहा चलो दोनों एकांत में धीमी रोशनी वाली टेबल की सीट पर बैठ जाते है। आज दोनो घुटन भरी जिंदगी से बहुत हिम्मत के साथ कुछ कुछ घुटन से दूर व्यतीत करने आए हैं आप हम का हाथ पकड़ते हुए हम दोनों इस रेस्टोरेंट में आज 10 साल बाद आ रहे हैं आप और हम दोनों एक दूसरे के नजर मिलाते हुए समय ही कहां मिलता था घर के कामों से सच तुम भी तो बाहर रहते थे और हम दोनों के सिवा एक दूसरे का है भी कौन हम की बात सुनकर आप से हिला कर उत्तर देता है।
आप हम से कहता है मैं समझता हूं उस घुटन वाली जिंदगी को जो तुम्हारे मन और दिल में बसी है। सच तो यह है जीवन और जिंदगी आप और हमारे आप और हम के हाथों में नहीं और घुटन भी जिंदगी तो हम सभी जीते हैं बस सबके जीने के अंदाज अलग-अलग होते हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र