शीर्षक: ख्याल
शीर्षक: ख्याल
दो कदम चलते हैं फिर रुक जाते हैं
आती-जाती राहे पूछे
यह कदम किधर जाते हैं
खामोश मंजर कुछ इस
तरह हमको हमी में समेटे हैं
कह ना पाए जो दर्द किसी से
जिंदगी में वह ख़ामोशियां बटोरे हैं।
चाहत भी नहीं रहती
शिकवे शिकायत की
गुंजाइशों का दौर भी खत्म है
वह अपनी मंजिल की तरह बढ़ चले
और हमारे क़दम
अब भी असमंजस में है।
मैंने जो ख़्वाबों का जहां बुना था
उनके लिए जो हंसी ख्वाब चुना था
शायद मुक़द्दर में नहीं थे वह हमारे
फिर क्यों रास्ता उन्हीं की तरफ़ मुडा था।
बचपना भी मेरी मोहब्बत में नहीं था
कुछ ज्यादा मैंने ख़ुदा से मांगा भी नहीं था
ख़ामोशियों से मैंने उसे पनाह दी थी
मेरा कोई गलत इरादा भी ना था।
काश की कोई ऐसा पल हो
हर तरफ मंज़र तेरा ही तेरा हो
दूर कितना भी रहा तू हमसे
पर हर वक्त ख्याल तेरा ही था।
हरमिंदर कौर अमरोहा ( यूपी)
हरमिंदर कौर
@@अमरोहा यूपी