शीर्षक – कुदरत के रंग…… एक सच
शीर्षक – कुदरत के रंग…… एक सच
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आज हम सब जानते हैं की सब का भाग्य और सब की किस्मत भी कुदरत के संग होती है हम परिवार में कितने भी मेंबर सदस्य होते हैं परंतु सबका भाग्य अपना-अपना अलग-अलग होता है क्योंकि हम सभी जीवन में जन्म भला ही एक साथ होते हो। परंतु सबका भाग्य और कुदरत के रंग एक सच होते हैं। आज हमारी कहानी एक बहन और एक भाई की जो की एक ही परिवार में जन्म देते हैं परंतु दोनों की आदत और व्यवहार अलग-अलग होते है। आओ हम सभी आज इस कहानी का नया अंदाज और सोच पढते हैं।
राम और रमा दोनों एक परिवार में पले बड़े हुए और बचपन से ही दोनों की आदतें एक दूसरे से अलग जबकि रमन नाम के अनुसार संस्कारी था और रमा अपने नाम के बिल्कुल विपरीत थी। रमा और रमन को परिवार की परवाह थी परंतु दोनों को विदेश पढ़ने भेजा गया जहां पर रमन तो पर लिखकर एक अच्छे इंसान की संस्कारी आदतों के साथ अपने देश की बात उसके संस्कार में बसी थी। और रमा विदेश में जाकर विदेशी संस्कारों से लिप्त हो गई और वह ना रिश्ते नाते समझती थी वह तो बस जीवन में शारीरिक संबंधों को महत्व देती थी और ना वह है भाई ना किसी रिश्ते नाते को मानती थी वह कहती थी कि आज आधुनिक समय है और आधुनिक समय में नारी का कोई अस्तित्व नहीं है बस उसका अस्तित्व एक स्वतंत्रता के साथ ही जीवित है और वह जीवन में यह सोचती थी कि एक आदमी के साथ जीवन बिताना बेवकूफी है परंतु उधर रमन उसके विपरीत समझता था वह कहता था नारी एक लज्जा और सम्मान की वस्तु है और उसे अपना सम्मान और इज्जत को हमेशा बचा कर रखना चाहिए परंतु रमा और रमन के विचार बिल्कुल अलग अंदाज थे।
रमा और रमन और एक बिजनेस की सिलसिले में विदेश में किसी विदेशी मेहमानों से मिलते हैं रमन को बिजनेस प्रपोजल समझ नहीं आता है और वह उसे प्रपोजल को मना कर देता है। परंतु रमा उस विदेशी मेहमान को खाने की टेबल पर आंखों ही आंखों में अपने बेडरूम की ओर इशारा कर देती है। और रमन से वह प्रपोज बिजनेस के कागज लेकर अपने बेडरूम की ओर चली जाती है रमन को यह बात बहुत अखरती है और वह वहां से उठकर चला जाता है। रमन विदेश में रहकर भी संस्कारी था परंतु वह रमा को समझ चुका होता है। और जब रमन सुबह अपने घर आता है तब वह देखता है की रमा बहुत खुश और संतुष्ट नजर आती है और वह अपने अस्त व्यस्त कपड़ों को सही करती हुई अपने भाई रमन रमन को कागज थमा देती हैं।
और जब रमा अपने बेडरूम से निकलती है। तब है विदेशी मेहमान भी उसके साथ ही साथ हाथ मिलाकर मुस्कुराता हुआ रमा के साथ किस करता हुआ चला जाता है। रमन प्रपोज पड़ता है और उसके साथ-साथ वन मिलियन का एक चेक भी देखता है। रमन कहता है रमा तुम जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही हो। रमा कहती है कि भाई सबका अपना अपना अंदाज है और सब की अपनी-अपनी इच्छाएं है और नई भी आज के युग में स्वतंत्र है और मैं आधुनिक युग की नई हूं मैं नहीं चाहती कि मैं किसी एक पुरुष के साथ जीवन के साथ बंध कर रहुं।
रमा कहती है कि भाई जिंदगी हर दिन एक नया रंगमंच होती है तुम चाहो तो कभी सोच कर देखना बस सोच तुम्हारी है और सोच ही मेरी है। रमन कुछ नहीं कहता है और बस यह कहता है तुम जाकर अपने कपड़े सही कर लो तब रमा कहती है भाई रिश्ते नाते तो मन के होते हैं। जिस्म और हम सब एक होते हैं परंतु तुम्हारी सोच तुम अपने साथ रखो मुझे मेरी जिंदगी में जीने का अलग अंदाज रखना है और मैं जीवन में स्वतंत्र और आधुनिक नारी का जीवन जीना चाहती हूं। रमन बिना कुछ कहे अपने ऑफिस की ओर निकल जाता है। रमा मुस्कुराते हुए अपने ड्राइवर को इशारा करती है कि वह गाड़ी निकाले उसे क्लब जाना हैं।
रमा अपने ड्राइवर के साथ जिस कार में जा रही होती है उसे कर का एक्सीडेंट हो जाता है। मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच हता है जीवन में हम सोचते हैं कि हमारे साथ कोई घटना होती है तो हम सोचते हैं कि हमारे कर्म हमारे साथ हैं। परंतु समय और जीवन चक्र का कुछ नहीं कहा जा सकता है कब किसके साथ क्या हो जाए और हम सभी अपने-अपने विचारों के साथ जीवन जीते हैं कि मैं जो कर रहा हूं वह सच और सही कर रहा ह हम जानते भी हैं कि हमारी गलती कहां हो रही है परंतु हम नजरअंदाज कर जाते हैं और जीवन के फल को समझ नहीं पाते बस यही रमा के साथ हुआ और वह और आधुनिक होने के सथ-साथ अपने ड्राइवर और अपने जीवन में नशा करना और अय्याशी के साथ जीवन को जीना उसकी एक आदत बन चुकी थी और वही आदत उसके कर्म और लेखा भाग्य को बलवान बनाता है और रमा मर जाती है उसके एक्सीडेंट में ड्राइवर भी मर जाता हैं। रमन ऑफिस तुरंत अपनी बहन की खबर सुनकर अस्पताल पहुंचत हैं। परंतु रमा मर चुकी होती है। सच रमन सोचता है हम सभी के अपने-अपने भाग्य और कर्म होते है।
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच होता है हम सभी के जीवन में हमारी सब की सोच अपनी-अपनी अलग होती है परंतु हम सभी जीवन में अपनी सोच के साथ ही जीवन जीते हैं बस सच एक यही है कि हमारे अपने कर्म और भाग्य भी अलग होता है जैसा की रमा और रमन की कहानी में हमने पढ़ा। हम आधुनिक हो या संस्कारी परंतु जीवन में स्वतंत्रता हमारी अपनी होनी चाहिए और राम अपने स्वतंत्र जीवन में सच के साथ आधुनिक सोच के साथ जीवन जीती रही बस सच तो यही है कि हम सब की सोच और हमारी अपनी जिंदगी कुदरत के रंग और भाग्य साथ चलती है यही जीवन का एक सच होता है।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र