शीत …..
दोहा त्रयी. . . .
ओढ़ चदरिया ओस की, शीत मचाये शोर ।
स्वर्ण सुन्दरी सी लगे, भोली -भाली भोर ।।
दर्शन दुर्लभ हो गए, कहीं गई रे धूप ।
घनी धुंध ने शीत में, छीना इसका रूप ।।
लगे तीर सी शीत में, शीतल तीव्र बयार ।
इसके आगे तो गए, शाल रजाई हार ।।
सुशील सरना / 31-12-23