शीत लहर
शीत लहर
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घिरा कोहरा चुभे तीर सी, हवा चले अति ठंडी रात ,
बैठे जला अलाव सेकते, आपस में जन करते बात ,
ठंड बढ़ी ठिठुरन है भारी, पौष मास में आफत शीत,
जो अभाव में जियें जिंदगी, लगती कुदरत मारे लात ।
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जिनके सिर पर छान नहीं है , बैठे काटें पूरी रात,
बेशक आग जला कर बैठे, फिर भी काँपे पूरा गात ,
है गरीब का जीना मुश्किल, लकड़ी भी बाबा के मोल,
काँप रहे ऐसे ज्यों काँपे, डाली पर पीपल का पात ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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