शीत लहर
शीत लहर अपनी डगर, चलती भृकुटी तान।
सूरज डर कर छुप गया, चंदा है हैरान।। १
हुई रात्रि स्तब्ध सी, विहग पड़े है मूक।
थरथर करते गात सब, तुहिन- कणों की हूक।। २
दूर दूर तक कोहरा,पेड़ खड़े हैं घेर।
चादर जैसा हर तरफ, लगा बर्फ का ढ़ेर।। ३
खडी़ दूब मोती लिए,चमक सुनहरी श्वेत।
भरे पुष्प से क्यारियाँ,पीली सरसों खेत।। ४
किसलय कोमल पात पर, बड़ी बड़ी सी बूँद।
पुलक लगी देखन धरा,सकी न आँखें मूँद।। ५
नन्ही बूंदें ओस की, चमक रही है घास।
प्रणय प्रेम व्याकुल धरा,भानु मिलन की आस।। ६
एक वृत्त है नेह का, निर्मल कोमल पाश।
बाँध रही प्रतिबिंब रच, धरती से आकाश।। ७
सनसन करती है हवा,नर्म गुलाबी धूप।
निखर रही है यह धरा,बड़ा निराला रूप।।८
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली