शीत ऋतु पर दोहे
शीत ऋतु पर दोहे
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शीत-लहर अब आ गया, मनुज रहे हैं काँप।
बचने को इस ठंड से,आग रहे सब ताप।।
मनभावन ऋतु शीत में , शीतल चले बयार।
शाम सुबह छुपने लगे , कंबल में संसार।।
छाई जग में कोहरा , शीत लहर के संग।
प्यारा सबको आग है , काँप रहे हर अंग।।
कोयल कूके बाग में , अलि करता गुंजार।
इस मौसम ऋतु शीत में,सुरभित है संसार।।
कोहिनूर ने ओढ़ ली,उष्ण सभी निज वस्त्र।
और बनाया आग को,शीत लहर में शस्त्र।।
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स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)