शिशिर ऋतु-३
भास्कर का तेज भी हुआ जैसे मध्यम-मध्यम
दिनेश का दिन पहले ढलने लगा है।
निशा उम्र हुई लम्बी बेंत-बेंत ठण्डी-ठण्डी
देहाती अलाव तेज जलने लगा है।
नीले-नीले नभ ऊपर धवल हंसों का कुल
नित्य नई उड़ान जैसे भरने लगा है।
रजनी रजत राकेश की रश्मि खलियानों में
विष्णु जल प्रतिबिंब झलने लगा है।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’