शिशिर ऋतु-१
सिहर-सिहर उठे- उठे तन मन मोरा
शिशिर की रौनक बढ़ने लगी है।
हाथ पैर तीड़े- तीड़े मानो सब पीड़े -पीड़े
चमचम रुखी काया होने लगी है।
नीर- नीर ठण्डा- ठण्डा लगे सब हिम -हिम
ठण्डी -ठण्डी पवन भी चलने लगी है।
शीशी- शीशी करती हुई शीत ऋतु आई अब
विष्णु कण्ठ ठण्डक भरने लगी है।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
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