शिव ही बनाते हैं मधुमय जीवन
शिव समस्त देवों के देव माने गये हैं, क्योंकि वे मनुष्य ही नहीं, प्राणी जीवन में जो भी व्यवधान, कष्ट या दुःख आते हैं, उनका निराकरण वे सहज भाव से करते हैं। वे प्रकृति की झोली हरियाली, फूल, फल, जल और सुगन्ध से भरते हैं।
सम्पूर्ण जगत के पालनहार शिव अन्य के हिस्से का हलाहल स्वंय पी जाते हैं। उनकी लटों में पावन गंगा विराजमान है जो सतत् प्रवाहित होकर प्रकृति को स्पंदित करती रहती है। अन्य देवों या प्राणियों से अलग शिव के तीन नेत्र हैं। दो नेत्र तो सिर्फ ऐन्द्रिक-बोध कराते हैं, जबकि तीसरा नेत्र आत्मज्ञान या आत्मबोध में अभिसिक्त होता है। त्रिनेत्रधारी शिव का यही आत्मबोध संसार को मंगलमय बनाकर मधुरता प्रदान करता है। शिव आत्मबोध के रूप में धर्मबोध के भी प्रदाता हैं। धर्म-बोध हमें परम शांति की ओर अग्रसर करता है। शिव द्वारा प्रदत्त पथ शैव धर्म के नाम से जाना जाता है। शिव के हाथ में डमरू है। शिव में नृत्यात्मकता है। शिव राग-रागनियों के उत्पत्तिकर्ता हैं। काल-छंद के रचयिता हैं। शिव सात स्वरों के जन्मदाता हैं। उन्हीं सात स्वरों में समस्त प्रकृति ही नहीं, मनुष्य भी अपने आंतरिक भावों को अनुभावों से गुंजित करता है।
शिव जितने दयावान, निर्मल, भोले-भाले हैं, उतने ही रौद्र। असहायों पर अपनी असीम कृपा लुटाने वाले शिव, दुष्टों असुरों, अहंकारियों, पापियों के प्रति अत्यंत कठोर और आक्रामक रहते हैं। एक पंचाग वर्ष की समस्त बारह शिवरात्रियों में से फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का दिन महाशिव रात्रि के रूप में माना और मनाया जाता है। इसी दिन रात्रि को भगवान शिव का ब्रह्मा से रूद्र के रूप में अवतरण हुआ। प्रलय काल में भगवान शिव ने ताण्डव नृत्य करते हुए सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने तीसरे नेत्र की भीषण ज्वाला से भस्म किया था, इसीलिए महाशिव रात्रि को काल रात्रि भी कहा जाता है।
इसी कालरात्रि में ब्रहमांड की सारी जड़ता समाप्त हुई। वायु का संचार हुआ। मेघ बरसे। तत्पश्चात् जड़ पृथ्वी पर पौधे उगे। वे पुष्पित-पल्लवित हुए। मादक सुगन्ध ने वातावरण में अपनी उपस्थित दर्ज करायी।
महाशिव रात्रि को पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की दशा इस तरह की बन जाती है कि मानव शरीर में ऊर्जा ऊपर की प्रस्थान करने लगती है। सुधिजन, मुनिजन, सज्जन इस ऊर्जा का संचयन कर अपने आत्म को और प्रकाशवान बनाने के लिये तपस्यालीन होते हैं। प्रभु-उपासकों के लिये महाशिवरात्रि अत्यंत महत्वपूर्ण है।
महाशिव रात्रि को ऊर्जा संचयन करने का सीधा अर्थ यह है कि शिव आराधक अपने को शिवमय बनाकर अपने जीवन को जगत कल्याण की ओर उन्मुख करते हैं। ज्ञानी लोग अपने ज्ञान का प्रसार-प्रचार पापाचार को समाप्त करने में करते हैं तो सामान्य जन शिव आराधना कर पारिवारिक और सामाजिक दायित्यों का निर्वाह करने में संकल्पबद्ध होते हैं।
महाशिव रात्रि को कंधों पर रखी जाने वाली काँवर जिसके आगे-पीछे रखी गंगाजल के बड़े-छोटे कांच के दो कलश श्रवण कुमार के अंधे माँ-बाप की तीर्थ यात्रा कराने का प्रतीक रूप हैं। काँवरियों की सेवा में जुटे भक्तजन उन्हें दूध पिलाते, खाना खिलाते हुए ऐसे लगते हैं, जैसे महाशिव रात्रि में हर किसी ने मानव मंगल और परोपकार के लिये साक्षात शिव का रूप धारण कर लिया हो।
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