शिव शक्ति
प्रकृति पुरूष के बीच में , हो रिश्ता बेजोड़
लिप्त हुए शिव शक्ति में,प्रेम अंकुर को फोड़
चली शक्ति शिव वरण को, करे दिशाएँ गान
हरषित होते प्रकृति पुंज , छेड रहे मृदु तान
सृष्टि चक्र यूँ चले जब, पाता बहु विस्तार
अर्द्ध नारी रूप शिव ,करते सागर पार
रहे एक दूसरे पर , नर नारी का अधिकार
प्रेम विजेता प्रीत के , यहीं सृजन का सार
जीवन दे उस भक्त को ,होये जिस पर हाथ
जिस मन मन्दिर रमा शिव , रहे उसी के साथ