****शिव शंकर****
शीश ही गंगा भालचंद्र धरे
भक्तन के वो दुख दरद हरे
आशुतोष,संकर जटाधारी
कैलाशपति, शंभू, त्रिपुरारी।
डम डम करही डमरू बाजे
मुखते उज्जवल आभा साजे
भस्म रमाये,धूनी लगाये
तांडव करही डमरू बजाये।
गिरिजापति,रुद्रेश्वर,भोला
संग विनायक,कार्तिक,गौरा
आवत जब ही क्रोध ते शंकरा
खोल देही तव वो तिरनेत्रा।
कामदेव इक बान चलायो
तव कामही भसम कर डालो
दींन दयालु,वे परमस्नेही
प्रद्युमन को तुम जीवन देहीं।
त्राहि त्राहि सब नाथ पुकारो
दुख,दारिद्रय ते अब उबारो
रत्नाकर दयो विष प्याला
धरयो हलाहल,तव प्रतिपाला।
गौरा संग ब्याह तव रचायो
शिवसंकर दुलहा बन आयो
प्रेतगन,किन्नर,सब ही नाचे
ताशे,मिरदंग,ढोलक, बाजे।
महादेव ते इक रूप निरालो
बाघम्बर,तन पे धरी आयो
धर लइ शीश मतवारी गंगा
कंठन सजायो तवप्रिय भुजंगा।
देखि महेश मन हर्षित भयो
रम्य,पुनीत जुग, नूतन दयो
गौरा मन ही मन मुस्काई
शिवसंकर संग प्रीति लगाई।
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक