शिव शंकर भोले भंडारी,जग के पालन हारी
शंकर भोले नाथ है,जग के पालनहार।
अपने भक्तो का सदा,करते है उद्धार।।
करते है उद्धार,मन मांगा वर है वे देते,
देते सभी को वर,बदले में कुछ न लेते।
कह रस्तोगी कविराय,कण कण में है शंकर,
जब उनको याद करो,प्रगट हो जाते है शंकर।।
नीलकंठ के शीश पर,बहे निरंतर गंग,
ऐसे प्रभु को देखकर,मन में उठे उमंग।
मन मे उठे उमंग,डुबकी को मन करता,
तन हो जाए पवित्र,नहाने को मन करता।
कह रस्तोगी कविराय,विष को रोका कंठ,
ऐसे प्रभु को कहते है,हम सब नील कंठ।।
जपता रहता नाम जो,पास न आता काल,
स्वयं उसकी रक्षा करे,भूपति है महाकाल।
भूपति है महाकाल,सबकी इच्छा पूरी करते,
अमृत पिलाकर,खुद विष को धारण करते।
कह रस्तोगी काविराय,वे तीन लोक के दाता,
काल पास ने आए,जो उनको जपता रहता।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम