शिव विवाह
‘शिव-विवाह’
हे महादेव औघड़ दानी हे शिव शंकर हे नगवासी,
हे करुणाकर हे कालेश्वर हे भोलेश्वर हे गिरिवासी!
सिर सोम गंग बिराज रहे विष भोले कंठ समाया है,
गल नाग रुद्र माला राजे डमरू ने अलख जगाया है।
काया भस्मी सँग भूत-प्रेत मृगछाला धारे त्रिपुरारी ,
नंदी पर बैठ चले बरने शंकर हिमवान सुता प्यारी।
जयकारा नभ में गूँज रहा हर-हर भोले घट-घट वासी,
हे करुणाकर हे कालेश्वर हे भोलेश्वर हे गिरिवासी!
विस्मित-औ-भयभीत हो गए भूत-पिशाच देख प्रतिहारी,
भस्म लपेटे असुर सरीखे शिवगण संग त्रिलोचनधारी।
भीतर जा हिमवान भूप को सूचित कर कौने में धाये,
द्वार बिलोकि महेश जमाता उग्र हुए राजन बौराये।
सकुचाती वर माला थामे देख उमा हरषे कैलाशी,
हे करुणाकर हे कालेश्वर हे भोलेश्वर हे गिरिवासी!
फेरे सात लिए गौरा ने पुलकित मन से हुई पराई,
दुखी पिता ने मौन साधकर की कन्या की आज विदाई।
लगा सुता को उर से अपने माँ ने पत्नीधर्म सिखाया,
तपस्विनी ने तप-व्रत करके योगी जगपालक को पाया।
विश्वनाथ कल्याण करो प्रभु हम हैं अनाथ, अनुचर, दासी,
हे करुणाकर हे कालेश्वर हे भोलेश्वर हे गिरिवासी!
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’