असतो मा ज्योतिर्गमय
असतो मा सद्गमय्
तमसो मा ज्योर्तिगमय्
आज का विषय
हे दयानिधि ,करूणा निधान्
विपदा हर मेरी,करो कल्यान्||
सत्य भ्रमित है ,लोभ बढ़ रहा
अज्ञानीं मैंप्रभु,पाप गढ़ रहा||
नहीं सत्य का बिल्कुल बोध
मार्ग दिखाओ,हूं दुर्बलअबोध||
करूणा सागर ,हर लो संताप
भव पार उतरूं,पाकर प्रताप||
सुख सम्पत्तिमदलोभ न आवै
प्रभु सुमिरन ,नैय्यापार लगावै||
प्रभु सुमिर,भव सेजब जाऊं
हे रघुनाथ तुममें ,विलीन हो जाऊं||
डॉ कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी