शिव मुक्तक
जीवन इतना सरल नहीं है, जब बहुतों ने भरमाया…
इस जीवन से मृत्यु सरल है, तरह तरह से बतलाया…
दुनियां भ्रम है दीप्ति अगन है, घोर निराशा छाया तम है,
कालकुट विष पीकर जीना, महादेव ने सिखलाया…
स्वर्णमयी लंका भी कमतर भक्ति और बस नेह पे वारा…
काम अग्नि से डिगे न योगी भृकुटि तनी और काम संहारा…
ऐसे भोले गंगाधर का ध्यान करो और नाम सुमिर लो,
देव नहीं हैं महादेव हैं भव से तारन हार तुम्हारा…
भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपूर, राजस्थान