शिव जी को चम्पा पुष्प , केतकी पुष्प कमल , कनेर पुष्प व तुलसी पत्र क्यों नहीं चढ़ाए जाते है ?
शिव जी को चम्पा पुष्प , केतकी पुष्प
कमल , कनेर पुष्प व तुलसी पत्र क्यों नहीं चढ़ाए जाते है ?
समाधान उत्तर –चौपई (जयकरी छंद 21 गाल )के
पुनीत रुप गागाल 221 में
जयकरी छंद में पदांत – गाल (पुनीत रुप में– गागाल )
~~~~~~~~~~~~~ सामान्य मान्यता
रखती सुंदर चम्पा फूल | खुश्बू रखकर करती भूल ||
भँवरा कहता उसको बाँझ | चम्पा रोती ढलती साँझ ||
मिले पराग न उसके भाग | करता भँवरा उसका त्याग ||
लगती चम्पा उसको हीन | खुश्बू रंगत लगते दीन ||
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धार्मिक मान्यता (नारद जी से श्रापित चम्पा राधा जी के काम आई )
शिव को चम्पा से आनंद | चम्पा खेली छल का छंद ||
बोली थी नारद से झूठ | नारद जी तब जाते रूठ ||
देते नारद जी है श्राप | उतरे तेरे मद का ताप ||
मत पराग का होगा वास | शिव आँगन से तेरा ह्रास ||
बुरी नियत का ले संज्ञान | आया था कोई नादान ||
तब देकर चम्पा ने फूल | जीवन में की भारी भूल ||
नारद पूछें तब इंकार | करे नहीं गलती स्वीकार ||
तब पराग का सूखा नूर | तब से चम्पा शिव से दूर ||
चम्पा रोती हरि के पास | मैं कहलाऊँ किसकी खास ||
कहते हरि यदि तू तैयार | राधा कर सकती उद्धार ||
राधा के तू आना काम | जिससे मुझको है आराम |
राधा पावन इस संसार | मिले उसे बस मेरा प्यार ||
चम्पा जाती राधा पास | कहती करलो मुझमें वास ||
अब तो हरि चरणों की धूल | सदा सुधारें मेरी भूल ||
राधा चम्पा बनके फूल | व्यंग्य बाण के सहती शूल ||
अपना रखती छुपा पराग | सिर्फ कृष्ण को देती भाग ||
भ्रमर रहे इस नाते दूर | हरि ही छूते उसका नूर ||
हरि का भँवरा होता दास | इस कारण मत जाए पास ||
राधा रहती चम्पा फूल | यादें हरि को यमुना कूल ||
चम्पा उनको है स्वीकार | देते उसको अपना प्यार ||
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केतकी प्रसंग
श्रीहरि -ब्रम्हा है तैयार | पता लगाने शिव आकार ||
ब्रम्हा जाते है पाताल | भरें विष्णु जी नभ में चाल ||
श्रीहरि लौटे खाली हाथ | नहीं मिली ऊँचाई नाथ ||
ब्रम्हा लौटे भरते ओज | गहराई ली हमने खोज ||
कहें केतकी सच है बात | यहाँ गवाही दूँ सौगात ||
कहते शिव है, करती पाप | सुनो केतकी मेरा श्राप ||
तुझे डसेगें मेरे नाग | आज छोड़ता तुझसे राग ||
जग में तब से सहती शूल | नहीं केतकी चढ़ते फूल ||
ब्रम्हा का भी गिरता शीष | झूँठ वचन जो बोला दीश |
बचे चार सिर बोलें नाथ | नहीं हमारा समझों साथ ||
ब्रम्हा का तब झुकता माथ | क्षमा माँगते जोड़े हाथ ||
महादेव ही जग आधार | जिनकी महिमा अपरम्पार ||
तब से ब्रम्हा मुख है चार | गिरा पाँचवाँ है बेकार ||
नहीं बोलना जग में झूठ | वर्ना जाते शिव जी रूठ ||
कहे केतकी मुझसे भूल | झूँठ उगा तन ,बनके शूल ||
क्षमा करो हे , दीनानाथ | सर्प डसें मत मेरा माथ ||
शिव कहते है लेना पाल | सर्प रखेगें तेरा ख्याल ||
नहीं झूँठ का देना साथ | देने पर डस लेगें माथ ||
कहे केतकी जोड़े हाथ | किस चरणों में जाऊँ नाथ ||
श्रीहरि ही तब आए काम | मिला केतकी को आराम ||
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तुलसी प्रसंग
कहें प्रिया हरि तुलसी आन | श्रीहरि जैसा दें सम्मान ||
करें नहीं हरिहर स्वीकार | बेल पत्र को बस दें प्यार ||
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कमल , कनेर पुप्ष प्रसंग
शिव कनेर को देते मान | कहें लक्ष्मी की ये आन ||
शिवजी देते है संदेश | सबका अपना रहता वेश ||
लाल पुष्प में लक्ष्मी मान | शिव खुद करते इनका गान ||
नहीं चढ़ाना शिव को आप | स्वीकारे मत इनकी जाप ||
(जाप =माला)
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श्री शिव जी का संदेश
किसने समझा शिव संदेश | क्या चाहें शिव कैसा वेश ||
जो भजते है शिव का नाम | उन तक मेरा है पैगाम ||
सदा बुराई देना तोड़ | शिव के सम्मुख आना छोड़ ||
गरल आपका कर लें पान | जग को अमरत देते दान ||
गरल कंठ में रखें सम्हाल | नहीं उतारे तन में काल ||
इस लीला से दें संदेश | नहीं बुराई आवें लेश ||
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सुभाष सिंघई