Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Aug 2020 · 5 min read

शिव कुमारी भाग ३

शिव कुमारी भाग ३

मेरी शिव कुमारी से मुलाकात 53 वर्ष पहले हुई थी। अब मैंने माँ के पेट से बाहर आकर सांस लेनी शुरू कर दी थी। पहली बार रो कर अभी थोड़ी देर पहले फारिग हुआ ही था कि वो माँ को कह रही थी, अरे लड़का हुआ है।

खुशी मे थाली बजाती हुई आस पड़ोस और बाहर नीम के पेड़ तक को कह आयी थी। फिर जब नज़र आई तो एक चम्मच और छोटी सी कटोरी मे कुछ पेय था, चम्मच से मुझे पिलाना शुरू कर दिया। ये जन्मघुंटी थी।

मेरी भविष्य की सारी शैतानियों की साझा जिम्मेदारी वो इस पेय को पिला कर अपने सर भी खुशी खुशी ले रही थी। और मुझको को भी जाता रही थी कि याद रखना , ये मेरी ही दी हुई है।

स्वाद तो अच्छा नही लगा था, पर लाचारीवश गटक गया। मेरी इज्जत का ख्याल न करते हुए, जिस पोतड़े(जन्म का पहला वस्त्र जो मुझे नसीब हुआ था) को मैं बांधे हुए अपनी शर्मिंदगी छुपा रहा था,उसको खोल कर फिर जांच कर रही थी, जैसे कोई अपने ताश के पत्ते देख कर एक बार नीचे रख कर, फिर कुछ देर बाद तसल्ली करने के लिए, एक बार और उठा कर देखले, कि पहली बार जो देखा था वो सही देखा था तो?

दोबारा जांच मे वैसे हर्ज ही क्या था? पर मेरी लाचार इज्जत की परवाह उस वक़्त किसे थी!!!

मेरी ओर देख कर फिर मुस्कुराने लगी।

उसके ऊपर और नीचे के दो चार दांत ही नजर आये थे बाकी सब अपनी जगह से गायब मिले। मैं जिंदगी मे पहली बार किसी के दांत देख रहा था। मैंने भी देखदेखी मे, अपने मसूड़ों पर जीभ फेरी, तो ऊपर और नीचे अर्धवृत्ताकार की सी दो दीवारें ही मालूम पड़ी, ऊपर वाली दीवार उल्टी हो कर लटक रही थी। अपने दांतों को न पाकर मैं रो पड़ा तो उसने माँ को कहा इसे दूध पिला दो।
ये तो पता नही कि मेरे मुंह मे माँ की ममता पहले गयी या ये पेय जो मुझे अभी जबरदस्ती पिलाया गया था , वो पहले गया था।

मुझे होश भी कम ही रहता था उस वक्त। माँ बताती है, मैं बिल्कुल आलसी और नाकारा पैदा हुआ था, दिन मे सोता रहता था।

और इतने अरसे की बात भी हो गयी सब कुछ धुंधला धुंधला सा नज़र आ रहा है स्मृति पटल पर।

माँ के स्तनों को मुँह मे डाले, जब मेरी नज़र उसकी ओर गयी, तो वो अपने बचे खुचे दांतो को निकाल कर बोली, ऐसे क्या देख रहा है पगले मैं तेरी दादी हूँ दादी।

मैंने माँ के आंचल से सर हटाकर उसके दांतो को फिर देखा और अपनी दांतो वाली जगह पर जीभ फेरी, मेरे दांत अब भी नदारद थे। मुझे अब इस बात का भी डर हो रहा था, कि दांतो की जगह पर जो दो दीवारें महसूस की थी, उसमे से ऊपर वाली अगर नीचे गिर गयी तो क्या होगा और मैं फिर रो पड़ा।

वो माँ को बोल पड़ी तुम इसे दूध पिलाओ मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने का बना कर लाती हूँ।

माँ को उनको ” आप “” कह कर पुकारता देख समझ गया, कि अब से शिव कुमारी को मैं भी उसके नाम से नही बुलाऊंगा।

अब तक जो बेतकल्लुफी से लिख दिया वो तो पैदा होने के पहले की बात थी। उनसे आज से पहले , मेरा कोई आधिकारिक रिश्ता भी तो नही था अब तक, अब जब मेरे साथ उनका एक रिश्ता भी जन्म ले चुका है, तो अब उन्हें दादी कह कर ही पुकारूंगा, फिर सोचा कि बोलने मे तो अभी एक दो साल और लग जाएंगे,
पहले तो माँ बोलना सीखना पड़ेगा।

आँख खुलते ही क्या कुछ सीखना शुरू हो जाता है।

फिर सोचा दादी कहूँ कि दादीजी कहूँ? चेहरा देखकर तो दोस्ताना अंदाज ही लगा। “जी” लगाने से उनसे ज्यादा खुल नही पाऊँगा।
इसलिए जब भी बोलना शुरू करूंगा, दादी ही कहूंगा।

रेतीले टीले उसे बचपन की सुखद और स्वछंद स्मृतियों, मे एक बार फिर बुला रहे थे, वो अपने पांव के निशान रेत पर देख पा रही थी। दादी एक बार खेलने को फिर उतावली हो रही थी।

और विश्वनाथ को दादाजी कहूंगा, वो सीधे साधे शांत स्वभाव के विद्वान व्यक्ति हैं, बहुत हुआ तो एक बार गोद मे लेकर मुस्कुरा देंगे, ठुड्डी पकड़ लेंगे, फिर बोल देंगे अरे इसको संभालो कोई या संस्कृत का कोई श्लोक सुनाने लगेंगे और कहेंगे इसको याद करलो कल सुनूंगा तुमसे।
पैदा होते ही कोई पढ़ाई करता है क्या? पर दादाजी को कौन समझाये।

तभी दादी को उनको बोलते सुना, कि सुन रहे है क्या?
इसकी जन्म की तारीख अपने पतरे(पञ्चाङ्ग) मे लिख कर रख लीजिए।
उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि वो लिख भी चुके है और गणना भी कर चुके है। बोलते कम थे पर अपना हर काम एक दम पेशेवर अंदाज मे करते थे। सभी घरवालों की जन्म तिथि और समय उनके उस वर्ष के पतरे मे लिखी हुई थी।

मेरी अंग्रेजी वर्ष के अनुसार जन्म की सही तारीख मुझे आज से 20 वर्ष बाद पता लगने वाली है, स्कूल मे तो पिताजी ने बस ऐसे ही कोई तारीख बता दी थी। ये तो दादाजी थे कि मे जान पाया।
उनकी इस लिखावट पर अंगुलिया फिराने का मौका बहुत दिन बाद आएगा, तब तक मैं बड़ा भी हो जाऊंगा और सिर्फ भावुक होऊंगा, रोना कमजोरी की निशानी है, तब तक जिंदगी सीखा ही देगी।

आप लोग जरूर सोच रहे होंगे, क्या पागलों की तरह लिखे जा रहा है अभी अभी जन्मा बच्चा इस तरह सोचता है क्या?आप बिलकुल सही कह रहे है।
मेरी उनसे बात तो दो तीन साल बाद ही शुरू होनी है। तब तक मैं चुप बैठा रहूँ क्या? और क्या वो चुप रहने वाली थी क्या?

इन बातों के कालखंड का क्रम बिल्कुल ऐसा नही था, पर जन्म लेकर मैं भी फुरसत मे था। और ये भी तो हो सकता है, कि शिव कुमारी ऐसा सोच रही हो मुझको देख कर। मेरी दादी ने भी अनुमान लगाना शुरू कर दिया था, मुझमे अपनी कुछ सोचे डालकर, जो फिर उन्होंने मुझे बाद मे बतायी थी।

इसलिए कुछ रिक्त स्थान बैठे बैठे अभी भर दिए। कोई पुस्तकों मे पढ़ाने वाला इतिहास तो है नही कि घटनाओं का क्रम सत्यापित किया जाए।

ये मेरे और दादी के बीच का मामला है हम जब चाहे जैसी बात करें।

बच्चे भले ही न कह पाएं पर कुछ भाव तो वो बिन कहे ही समझ जाते है, चाहे वो व्यक्त कर पाएं या नही। भाषा तो बहुत बाद मे आती है!!!

अब मैं भी अपने बोलने की शुरआत के इंतजार मे था।

दादी से बहुत बात करनी थी मुझे , मेरी आँख ,कान और दिमाग के प्रारंभिक कुछ अध्यायों मे उनके हस्ताक्षर होने वाले थे

इस बीच बहुत कुछ नजरों के सामने से गुजरेगा। कुछ समझ मे आएगा, कुछ बिल्कुल भी नही।

ये गौर से बस देखने का मौका था, जुबान, दांतो की ही तरह गायब रहने वाली थी अभी कुछ अर्से।

शायद ये संकेत भी था कि बस देखो और समझो, अभी बोलने का वक्त नही आया है और ये भी कि जब बोलोगे तो क्या बोलोगे।

इस बीच दादी, फिर कोई एक पेय लेकर आ गयी थी। इनको भी चैन नही है!!

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 400 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Umesh Kumar Sharma
View all
You may also like:
अनारकली भी मिले और तख़्त भी,
अनारकली भी मिले और तख़्त भी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
ज़िन्दगी में अच्छे लोगों की तलाश मत करो,
ज़िन्दगी में अच्छे लोगों की तलाश मत करो,
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
Introduction
Introduction
Adha Deshwal
हम छि मिथिला के बासी
हम छि मिथिला के बासी
Ram Babu Mandal
*रोग से ज्यादा दवा, अब कर रही नुकसान है (हिंदी गजल)*
*रोग से ज्यादा दवा, अब कर रही नुकसान है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
उपेक्षित फूल
उपेक्षित फूल
SATPAL CHAUHAN
या तो लाल होगा या उजले में लपेटे जाओगे
या तो लाल होगा या उजले में लपेटे जाओगे
Keshav kishor Kumar
मैने थोडी देर कर दी,तब तक खुदा ने कायनात बाँट दी।
मैने थोडी देर कर दी,तब तक खुदा ने कायनात बाँट दी।
Ashwini sharma
हिन्दू और तुर्क दोनों को, सीधे शब्दों में चेताया
हिन्दू और तुर्क दोनों को, सीधे शब्दों में चेताया
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
2687.*पूर्णिका*
2687.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मनुष्य की महत्ता
मनुष्य की महत्ता
ओंकार मिश्र
तुमने मुझे दिमाग़ से समझने की कोशिश की
तुमने मुझे दिमाग़ से समझने की कोशिश की
Rashmi Ranjan
प्रेमिका को उपालंभ
प्रेमिका को उपालंभ
Praveen Bhardwaj
संविधान का पालन
संविधान का पालन
विजय कुमार अग्रवाल
दिल के अरमान मायूस पड़े हैं
दिल के अरमान मायूस पड़े हैं
Harminder Kaur
पाखंड
पाखंड
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सिर्फ तुम
सिर्फ तुम
Arti Bhadauria
"जीना"
Dr. Kishan tandon kranti
कीजै अनदेखा अहम,
कीजै अनदेखा अहम,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
सोचो
सोचो
Dinesh Kumar Gangwar
हुआ पिया का आगमन
हुआ पिया का आगमन
लक्ष्मी सिंह
दोस्ती अच्छी हो तो रंग लाती है
दोस्ती अच्छी हो तो रंग लाती है
Swati
तेरा मेरा वो मिलन अब है कहानी की तरह।
तेरा मेरा वो मिलन अब है कहानी की तरह।
सत्य कुमार प्रेमी
वक्त वक्त की बात है ,
वक्त वक्त की बात है ,
Yogendra Chaturwedi
अफ़सोस
अफ़सोस
Dipak Kumar "Girja"
अब हक़ीक़त
अब हक़ीक़त
Dr fauzia Naseem shad
■ देसी ग़ज़ल
■ देसी ग़ज़ल
*प्रणय प्रभात*
The only difference between dreams and reality is perfection
The only difference between dreams and reality is perfection
सिद्धार्थ गोरखपुरी
जो बिकता है!
जो बिकता है!
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
आया सावन झूम के, झूमें तरुवर - पात।
आया सावन झूम के, झूमें तरुवर - पात।
डॉ.सीमा अग्रवाल
Loading...