*”शिव और शक्ति “*
“शिव और शक्ति”
चैतन्य शाश्वतं शान्तं व्योमातीत निरजंन।
नाद बिंदु कलातीत तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
“नाद बिंदु” ;-
चराचर जगत में नाद स्वरूप है बिंदु शक्ति व नाद शिव जी
इस तरह यह जगत शिव शक्ति स्वरूप ही है।
नाद बिंदु का और बिंदु का आधार है ये बिंदु और नाद ( शक्ति व शिव) संपूर्ण जगत के आधार स्वरूप में स्थित है।
बिंदु और नाद से युक्त सब कुछ शिव स्वरूप है; क्योंकि वही सबका आधार है।
आधार ही आधेय का समावेश अथवा लय होता है यह सकलीकरण है इस स्थिति से ही सृष्टिकाल के जगत का प्रादुर्भाव होता है इसमें कोई संशय नहीं है।
शिवलिंग बिंदु नाद स्वरूप है अतः उसे जगत का कारण बताया गया है।
बिंदु देव है नाद शिव ,इन दोनों का सयुंक्त रूप ही शिवलिंग कहलाता है। अतः जन्म के संकट से छुटकारा पाने के लिए शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। बिंदु स्वरूपा देवी उमा माता पार्वती हैं और नाद स्वरूप भगवान शिव जी पिता।इन माता पिता के पूजित होने से परमानंद की प्राप्ति होती है।अतः शिवलिंग की विशेष रूप से पूजन करें।
देवी उमा जगत की माता है और भगवान शिव जगत के पिता।जो इनकी सेवा उपासना करता है, उस पुत्र पर इन दोनों माता पिता की असीम कृपा नित्य अधिकाधिक बढ़ती रहती है।वे पूजक पर कृपा करके उसे आंतरिक ऐश्वर्य वैभव प्रदान करते हैं।
आंतरिक आनंद की प्राप्ति के लिए ,शिवलिंग को माता पिता का स्वरूप मानकर उसकी पूजा अर्चना करनी चाहिए।
भर्ग (शिव) पुरुष रूप है और भरगा (शिवा) अथवा शक्ति प्रकृति कहलाती है।
अव्यक्त आंतरिक अधिष्ठान रूप गर्भ को पुरुष कहते हैं और सुव्यक्त आंतरिक अधिष्ठान भूत गर्भ को प्रकृति।पुरूष आदिगर्भ है,वह प्रकृति रूप गर्भ से युक्त होने के कारण गर्भवान है ; क्योंकि वही प्रकृति का जनक है।प्रकृति में जो पुरुष का संयोग होता है यही पुरूष से उसका प्रथम जन्म कहलाता है।अव्यक्त प्रकृति से महत्वत्त्वादी के क्रम से जो जगत का व्यक्त होना है यही उस प्रकृति का द्वितीय जन्म कहलाता है।जीव पुरुष से ही बारंबार जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता है। माया द्वारा अन्य रूप से प्रगट किया जाना ही उसका जन्म कहलाता है।जीव का शरीर जन्मकाल से ही जीर्ण (छः भाव विकारों से युक्त) होने लगता है, इसीलिए उसे जीव संज्ञा दी गई है।जो जन्म लेता है और विविध पाशों द्वारा तनाव (बंधन) में पड़ता है ,उसका नाम जीव है ; जन्म और बन्धन जीव शब्द का अर्थ ही है।
अतः जन्म – मृत्यु रूपी बंधन की निवृत्ति के लिए जन्म के अधिष्ठान भूत मातृ – पितृ स्वरूप शिवलिंग का पूजन करना चाहिए।
गाय का दूध ,दही ,घी ,शहद ,शक्कर के साथ पृथक पृथक रखें और इन सभी को मिलाकर पंचामृत तैयार कर लें। इन सभी के द्वारा शिवलिंग को स्नान कराए अभिषेक करें।पुष्प नैवेध मंत्र उच्चारण करते हुए अर्पण करें।
प्रणव मंत्र उच्चारण से शिव जी को अर्पित करें।सम्पूर्ण प्रणव को ध्वनि लिंग कहते हैं।
स्वयम्भूलिंग नाद स्वरूप होने के कारण नादलिंग कहा गया है।
यंत्र या अर्घा बिंदु स्वरूप होने के कारण बिंदु लिंग के रूप में विख्यात है।उसमें अचल रूप से प्रतिष्ठित जो शिवलिंग है, वह मकार – स्वरूप है ,इसीलिए मकारलिंग कहलाता है।
सवारी निकालने आदि के लिए जो चरलिंग होता है ,वह उकार स्वरूप होने से उकारलिंग कहा गया है तथा पूजा की दीक्षा देने वाले जो गुरु या आचार्य हैं ,उनका विग्रह आकार का प्रतीक होने से आकारलिंग माना गया है।इस प्रकार अकार ,उकार ,मकार ,बिंदु ,नाद और ध्वनि के रूप में लिंग के छः भेद है।
इन छहों लिंगो की नित्य पूजा करने से साधक जीवन्मुक्त हो जाता है इसमें कोई संशय नहीं है।
ॐ नमः शिवाय शुभम शुभम कुरु कुरु शिवाय नमः ॐ
ॐ नमः शिवाय श्री शिवाय नमस्तुभ्यं
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शशिकला व्यास ✍
शिव महापुराण से लिया गया है।