Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Feb 2022 · 7 min read

“शिवाजी और उनके द्वारा किए समाज सुधार के कार्य”

शिवाजी के सामने भारत पर इस्लामी-आक्रमण का रक्तरंजित इतिहास था। हिंदुओं की हत्याओ और मंदिरों के विध्वंस से भारत का इतिहास भरा पड़ा है। शिवाजी उसे एक पल के लिए भी नहीं भूलते थे इसलिए उन्होंने हिंदुत्व का विध्वंस करने वालों का विध्वंस करने के लिए फौज का निर्माण किया, लड़ाइयां लड़ी और दुश्मन को हराकर स्वराज्य का राज्य स्थापित किया।
किंतु स्वराज्य की स्थापना करते समय शिवाजी ने शत्रु की धार्मिक भावनाओं को कभी ठेस नहीं पहुंचाई, न हीं उन्होंने उनके प्रार्थना-स्थलों को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाई। शिवाजी ने इस्लामी शत्रुओं से लड़ाइयां जरूर लड़ी किंतु इस्लामी प्रजा से उनका कोई शत्रुत्व नहीं था।
शिवाजी तो इतिहास बदलने वाले राजा थे। इतिहास के प्रवाह में न बहकर उन्होंने अपने धर्म के साथ-साथ दूसरों के धर्म की भी रक्षा की। इस अच्छी परंपरा का निर्माण करके उन्होंने सिद्ध किया कि धार्मिक उन्माद से कभी कोई राष्ट्र बड़ा नहीं होता। धर्म महत्वपूर्ण है, किंतु राष्ट्र के विकास में, राष्ट्र की सुरक्षा में धर्म रुकावट नहीं बनना चाहिए; यही संदेश शिवाजी ने अपने आचरण से दिया।

शिवाजी महाराज के इन अलौकिक कार्य को न केवल अपनों ने बल्कि शत्रुओं ने भी सराहा औरंगजेब का चरित्र लिखने वाले खाफीखान, शिवाजी का कट्टर शत्रु था किंतु उसने भी अपने ग्रंथ में लिखा है – ‘शिवाजी ने कठोर नियम बनाया था कि आक्रमण के समय सैनिक मस्जिद या कुरान का सम्मान रखे, इन्हें किसी प्रकार का नुकसान ना पहुंचाऐं। यदि किसी को कुरान की प्रति हाथ लगे, तो उसे वह सम्मान के साथ किसी मुसलमान को सौंप दें।’

शिवाजी का व्यक्तिगत जीवन अत्यंत पवित्र और निर्मल था। महिलाओं के प्रति उनके मन में असीम सम्मान था। पराई स्त्री को उन्होंने हमेशा अपनी माता के समान ही माना। उनका वाक्य ‘अशीच अमुची आई असती सुंदर रूपवती।’ विश्व प्रसिद्ध है सुंदर स्त्री को देखकर उन्होंने सदैव अपनी माता को ही याद किया।
सन 1657 में शिवाजी महाराज की और से आबाजी सोनदेव ने कल्याण पर आक्रमण किया। उस हमले में कल्याण के सूबेदार मुल्ला अहमद और उसकी सुंदर बहू को कैद कर लिया गया। आबाजी सोनदेव ने मिली हुई लूट के साथ उसकी बहू को भी शिवाजी के सामने पेश किया। तब शिवाजी ने उसे देखते ही कहा, “काश! हमारी माता भी इतनी सुंदर होती! तो हम भी ऐसे ही सुंदर होते!” इन शब्दों के साथ शिवाजी ने उसे बाइज्जत उसके पति के पास भेज दिया।
शिवाजी ने आबाजी सोनदेव से कहा, “जो यश प्राप्ति की आशा करता है उसे पर स्त्री की इच्छा कभी नहीं करनी चाहिए। राजा को भी पर स्त्री को कभी नहीं अपनाना चाहिए। रावण जैसे बलशाली व्यक्ति का इसी वृत्ती के कारण सर्वनाश हुआ था फिर हमारे जैसे व्यक्तियों की बात ही क्या है? प्रजा तो पुत्र के समान होती है।”
क्षण मात्र में सभी की समझ में आ गया कि महाराज हर स्त्री में माँ का ही स्वरूप देखते हैं। शिवाजी महाराज के इस कथन का सबके मन पर अच्छा प्रभाव पड़ा। सब ने अनुभव किया कि महाराज तो महापुरुष है उनके हाथ से अनाचार कभी नहीं होगा वे न स्वयं अनाचार करेंगे, ना किसी को करने देंगे।

जावली को पराजित करने के बाद शिवाजी ने भोरपा के पर्वत पर एक किला बनवाया था और उसका नाम रखा प्रतापगढ़। वहां उन्होंने माँ भवानी का मंदिर बनवाया। शिवाजी माँ भवानी की स्थापना-पूजा करने वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि नीचि जाति के कुछ लोग दूर खड़े हैं। पूछने पर पता चला कि वह मूर्ति बनाने वाले अछूत लोग हैं। शिवाजी ने उन्हें बुलाकर पूजा करने की आज्ञा की। पुजारी ने विरोध दर्शाया, किंतु शिवाजी महाराज ने अपने आज्ञा के समर्थन में पुजारी व उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों से पूछा कि जब यह लोग मूर्ति का निर्माण कर सकते हैं तो उसी मूर्ति की पूजा क्यों नहीं कर सकते?
शिवाजी ने हर मनुष्य को मनुष्य ही माना। उसकी जाति को कभी महत्व नहीं दिया छुआछूत की प्राचीन परंपरा के बोझ से दबे तत्कालीन समाज में जाति को नकारना कोई साधारण बात नहीं थी। शिवाजी ने इस असाधारण बात को अपने व्यक्तिगत आचरण से बड़ी सहजता के साथ संभव कर दिखाया था जैसे उन्होंने स्वयं अपनी माता को सती होने से रोक कर समाज के नाम एक जीवंत संदेश दिया था वैसे ही उन्होंने तथाकथित नीची जातियों के अनेक व्यक्तियों को अपनी सेवा में नियुक्त कर समाज में उनके लिए ऊंची जगह बनाई थी। यह तभी संभव था, जब स्वयं शिवाजी जातिवाद को रंचमात्र भी स्वीकार नहीं करते।

शिवाजी निश्चित ही हिंदू धर्म का पालन करते थे, किंतु आंखें मूंदकर नहीं। अनेक धार्मिक बातें ऐसी थी जो हिंदुओं को बहुत प्रिय थी किंतु शिवाजी उन बातों से दूर रहते थे।
किंतु अपने मन और मानस में बहुत स्पष्टता से समझते थे कि धर्म को जैसे का तैसा पालना जरूरी नहीं है।
किसी हिंदू को यदि जबरन मुसलमान बना लिया गया हो, तो क्या उसे सदा-सदा के लिए हिंदुत्व से अलग मान लिया जाए?जबकि उस वक्त के हिंदू तो यही मानते थे कि हिंदुत्व की कसौटी पर उनकी मृत्यु हो गई है। इस जनम में उसने पाप किया है। अब वह अगले जन्म में मनुष्य योनि में नहीं जाएगा। वह कुछ भी बन सकता था कीड़ा,मकोड़ा, चींटी लेकिन वह मनुष्य नहीं बनेगा। लेकिन जब वह मनुष्य ही नहीं बनेगा तो प्रायश्चित कैसे करेगा? कोई कीड़ा मकोड़ा थोड़े ही प्रायश्चित करना जानता है तो क्या उसे एक बार भी मौका न मिले पाप का प्रायश्चित करने का, क्या यह अन्याय नहीं है, एक मनुष्य के साथ? लेकिन शिवाजी के समय में ऐसे तर्क वितर्क की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। हिंदू अपने धार्मिक रीति रिवाज के साथ बड़ी कठोरता से जुड़े हुए थे।
शिवाजी ने कभी नहीं माना कि जो एक बार मुसलमान हो गया वह वापस हिंदू नहीं बन सकता उन्होंने स्वयं प्रयास करके अनेक पथभ्रष्ट हिंदुओं को वापस हिंदुत्व के पथ पर चलाया था। इतना ही नहीं ऐसे व्यक्तियों के साथ उन्होंने वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए थे जैसे कि नेताजी पालकर और बजाजी निंबालकर।
बजाजी निंबालकर एवं नेताजी पालकर की सुन्नत की जा चुकी थी। मुसलमानों के साथ वे पांच दस वर्ष रह भी चुके थे उन्हें शिवाजी ने हिंदू धर्म में वापस ले लिया। इन दोनों को समाज ने भी अपना लिया।
शिवाजी ने नेताजी पालकर के भतीजे जानोजी से अपनी पुत्री कमलाबाई का विवाह किया!
नेताजी पालकर इस्लाम अपनाकर अफगानिस्तान में आठ वर्ष बिता चुके थे शिवाजी ने उनकी शुद्धि करवाई और स्वयं उनके साथ बैठकर भोजन किया।

1666 में शिवाजी आगरा से जब औरंगजेब की कैद से पलायन कर गए थे तब उनके साथी नेताजी पालकर को औरंगजेब ने हिरासत में ले लिया था। पालकर और उनके परिवार को मुसलमान बना लिया गया। पालकर की सुन्नत करके उनका नाम बदलकर कूली खान रखा गया और उन्हें काबुल की मुहिम पर रवाना कर दिया। वहां वे 10 साल मुसलमान बन कर रहे लेकिन मौका मिलते ही 1676 में वे लौटकर शिवाजी की शरण में आ गए। जैसी कि उनकी इच्छा थी, शिवाजी ने उन्हें वापस हिंदू बना लिया।
किंतु शिवाजी के इतने अनोखे आधुनिक विचारों के कद्रदान उस समय थे ही कितने! पेशवाई में उनके धार्मिक विचारों को महत्व ही नहीं दिया गया। पेशवाई के सबसे शूरवीर योद्धा बाजीराव पेशवा अपनी मुसलमान प्रेयसी मस्तानी के बेटे शमशेर बहादुर को हिंदू बनाना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं कर सके। शमशेर बहादुर को कृष्ण सिंह नाम देना चाहते थे लेकिन ऐसा भी नहीं कर सके। अत्यंत शूरवीर होने के बावजूद उन्हें समाज की धार्मिक कट्टरता के चलते घर छोड़कर निकल जाना पड़ा।

नेताजी पालकर का शुद्धिकरण करके उन्हें हिंदू धर्म में वापस लेकर, पंक्ति में साथ बिठाकर भोजन करके, शिवाजी ने समाज सुधार की जो नीव आज से 400 साल पहले रखी थी उस तक वर्तमान बीसवीं सदी के भी कितने समाज सुधारक पहुंच पाए है? बंधु कल्याण की भावना शिवाजी के मन में कितनी सुंदरता से विकसित हुई थी! उस समय का ब्राह्मण समाज शिवाजी के विचारों के साथ कैसे सहमत हुआ? अभिमानी कुलीन मराठे कैसे तैयार हुए? सोचकर आश्चर्य होता है। ऐसा नहीं था कि शिवाजी ने अपने विचारों को दूसरों पर जबरन लादा। उन्होंने तो केवल स्वयं का उदाहरण सबके सामने प्रस्तुत किया था। स्व-धर्म एवं मानव धर्म के प्रति शिवाजी की निष्ठा इतनी तीक्ष्ण थी कि उन्हें अधर्मी कहने की कल्पना भी उनके समय में कोई नहीं कर सकता था । शिवाजी ना केवल स्वराज्य के संस्थापक थे बल्कि हिंदू धर्म के व्यवस्थापक भी थे संस्थापक एवं व्यवस्थापक इन दो खंभों पर उनका खेमा मजबूती से गड़ा हुआ था।

इसी तरह अंधविश्वास एवं अंधश्रद्धा के विरोध में शिवाजी कितनी मजबूती से डटे थे इसका तो एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा— बच्चा यदि उल्टा जन्म लेता है तो ऐसे बच्चे को तत्काल अशुभ मान लिया जाता है। राजाराम महाराज के उलटे जन्म लेने पर सबके चेहरे फीके पड़ गए थे उनके जन्म का आनंद किसी ने नहीं बनाया। शिवाजी को यह बात पता चली तो वे बोले “अरे! ईश्वरीय संकेत को समझो। पुत्र उल्टा पैदा होने का अर्थ है कि यह बच्चा एक दिन मुस्लिम बादशाहत को उल्टा कर देगा।”
सुनकर सब के चेहरे खिल गए सब आनंद मनाने लगे।

शिवाजी महाराज के प्रदेशों में डच, फ्रेंच, पुर्तगीज इत्यादि विदेशियों द्वारा मनुष्य की खरीद-फरोख्त हो रही है। ऐसा समाचार पाते ही उन तमाम विदेशियों को शिवाजी ने इतने कड़े शब्दों में चेतावनी दी कि गुलामी की कुप्रथा शिवाजी के राज्य से सर्वथा लुप्त हो गई थी। यूरोपीय देशों एवं अमेरिका में भी जब गुलामी की कुप्रथा धड़ल्ले से जारी थी तब शिवाजी ने अपने स्वराज्य में उसका सफाया कर दिया था। शिवाजी विश्व के सर्वप्रथम राज्यकर्ता है जिन्होंने गुलामी की कुप्रथा से रूबरू होते ही उसका सफाया कर दिया।
सचमुच शिवाजी का समाज-सुधारक का रूप अत्यंत शक्तिशाली है उनका समाज-सुधार सिर्फ जुबानी कभी नहीं रहा शिवाजी महाराज ने स्वयं का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए समाज व राजनीति को प्रभावित किया। मनुष्य-मनुष्य के बीच समानता के अद्भुत समर्थक के रूप में शिवाजी सदा उपस्थित रहते थे।
राजनीति, धर्म, संस्कार, संस्कृति, न्याय, शिक्षा, भाषा, विश्वास-अंधविश्वास, धार्मिक सौहार्द, पर्यावरण आदि अनेक परस्पर भिन्न क्षेत्रों में वे एक साथ संचरण करते थे। ऐसी कोई कुप्रथा नहीं थी जिसे उन्होंने जड़-मूल से नष्ट नहीं किया, ताकि समाज में स्थाई सुधार हो सके।

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 1835 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
देश भक्ति का ढोंग
देश भक्ति का ढोंग
बिमल तिवारी “आत्मबोध”
■ लोक संस्कृति का पर्व : गणगौर
■ लोक संस्कृति का पर्व : गणगौर
*Author प्रणय प्रभात*
जिनसे ये जीवन मिला, कहे उन्हीं को भार।
जिनसे ये जीवन मिला, कहे उन्हीं को भार।
डॉ.सीमा अग्रवाल
मेरी ख़्वाहिशों में बहुत दम है
मेरी ख़्वाहिशों में बहुत दम है
Mamta Singh Devaa
**बात बनते बनते बिगड़ गई**
**बात बनते बनते बिगड़ गई**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
आप और हम
आप और हम
Neeraj Agarwal
*जाते हैं जग से सभी, राजा-रंक समान (कुंडलिया)*
*जाते हैं जग से सभी, राजा-रंक समान (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
बुद्ध मैत्री है, ज्ञान के खोजी है।
बुद्ध मैत्री है, ज्ञान के खोजी है।
Buddha Prakash
अपनों को नहीं जब हमदर्दी
अपनों को नहीं जब हमदर्दी
gurudeenverma198
कभी-कभी वक़्त की करवट आपको अचंभित कर जाती है.......चाहे उस क
कभी-कभी वक़्त की करवट आपको अचंभित कर जाती है.......चाहे उस क
Seema Verma
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
चेतावनी हिमालय की
चेतावनी हिमालय की
Dr.Pratibha Prakash
चाँदनी .....
चाँदनी .....
sushil sarna
* हो जाओ तैयार *
* हो जाओ तैयार *
surenderpal vaidya
परिस्थितियां अनुकूल हो या प्रतिकूल  ! दोनों ही स्थितियों में
परिस्थितियां अनुकूल हो या प्रतिकूल ! दोनों ही स्थितियों में
Tarun Singh Pawar
ज़िंदगी में एक बार रोना भी जरूरी है
ज़िंदगी में एक बार रोना भी जरूरी है
Jitendra Chhonkar
दोहा
दोहा
दुष्यन्त 'बाबा'
बलबीर
बलबीर
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
सही कहो तो तुम्हे झूटा लगता है
सही कहो तो तुम्हे झूटा लगता है
Rituraj shivem verma
दीपावली
दीपावली
डॉ. शिव लहरी
आहाँ अपन किछु कहैत रहू ,आहाँ अपन किछु लिखइत रहू !
आहाँ अपन किछु कहैत रहू ,आहाँ अपन किछु लिखइत रहू !
DrLakshman Jha Parimal
चन्द्रशेखर आज़ाद...
चन्द्रशेखर आज़ाद...
Kavita Chouhan
किसी भी चीज़ की आशा में गँवा मत आज को देना
किसी भी चीज़ की आशा में गँवा मत आज को देना
आर.एस. 'प्रीतम'
स्वाधीनता संग्राम
स्वाधीनता संग्राम
Prakash Chandra
दादी माॅ॑ बहुत याद आई
दादी माॅ॑ बहुत याद आई
VINOD CHAUHAN
कोई जब पथ भूल जाएं
कोई जब पथ भूल जाएं
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
रोबोटिक्स -एक समीक्षा
रोबोटिक्स -एक समीक्षा
Shyam Sundar Subramanian
*लटें जज़्बात कीं*
*लटें जज़्बात कीं*
Poonam Matia
2680.*पूर्णिका*
2680.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
:: English :::
:: English :::
Mr.Aksharjeet
Loading...