शिवलिंग-भ्रम और वैज्ञानिकता
शिवलिंग -भ्रम और वैज्ञानिकता
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प्राय: शिव जी के बारे में जो विद्वान ,पंडित और पुराण हमें उनके अस्तित्व के बारे में समझाते हैं कि शिव निराकार,अविनाशी,अजन्मा और शाश्वत है। इसका अर्थ यह है कि जिसका न जन्म हो और जिसकी न मृत्यु हो;काल और समय के प्रवाह से अविचलित सदा इस विश्व के कल्याण के लिये प्रकृति और जीव जगत को नियमन देने वाले परम शक्ति के रूप में अपने निराकार रूप में ही सेवा करते हैं। समय समय पर विश्व में जो दुर्गुण और प्रदूषण रूपी अव्यवस्था रूपी विष निकलता है उसे कंठ में धारण करते हैं। इसका भाव यह है कि हमें प्रत्येक बुरे विचार को ह्रदय तक नहीं ले जाना चाहिये अपितु अपनी मेधा का प्रयोग करके;मंथन करके अमृत तत्व को आत्मसात करना चाहिये और विष को अपने में प्रवेश नहीं होने देना चाहिये।
शिव स्वरूप को लेकर भी भ्रम रहता है।जब वह निराकार है तो उसका आकार कैसा ?? यह बड़ा गंभीर प्रश्न है!!
आज हम इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयत्न करते हैं;आपने कृष्ण छिद्र अथवा कृष्ण गुह्य का नाम सुना है नहीं न तो आसान शब्द से जान लीजिये वह है Black Hole. यह ब्रह्मांड में लगातार चलने वाली ऐसी प्रक्रिया है जिसमें इतना अधिक गुरुत्वाकर्षण होता है कि जिसमें उसके आस पास की सभी वस्तुयें समा जाती हैं;ये धूल के कण से लेकर बहुत बड़े सितारे तक उसमें समा जाते हैं।और यदि आप इसका चित्र देखें तो यह ब्लैक होल(Black Hole) एकदम शिवलिंग के स्वरूप जैसा लगता है और निराकार है और इसमें से जो ऊर्जा छिटक कर निकलती है को आप पायेंगें कि यह शिवलिंग की वेदी का स्वरूप है और दोनों एकाकार हो गये हैं।पार्वती जी को आदिशक्ति का रूप माना गया है और इसमें (कृष्ण छिद्र) से जो ऊर्जा निकलती है उससे नये तारों का निर्माण होता है;तो जहां शिवजी काल बन कर दंड देते हैं वहीं नव निर्माण भी साथ ही साथ करते हैं।
वैज्ञानिक जो आज हबल दूरदर्शी यंत्र से देखते हैं और कंप्यूटर पर लाखों करोड़ों गणनायें कर निष्कर्ष निकालते हैं वही निष्कर्ष हमारे ऋषि मुनियों ने केवल योग विद्या से ही प्राप्त कर लिया । और इस अलौकिक सत्य को देव स्वरूप देकर जन जन तक यह सिद्धांत सरल माध्यम द्वारा पूजनीय बनाया।प्रकृति की इस अद्भुद रचना संसार को समझाने का इससे सरल उपाय नहीं हो सकता।आज के वैज्ञानिकों की मानें तो ब्रह्मांड की आयु लगभग ग्यारह सौ अरब निकलती है जब यह पूरा ब्रह्मांड एक ही ब्लैक होल बन जायेगा।
आज शिवलिंग को एक साधारण प्रतिमा के रूप में न देखें अपितु इसे ब्रह्मांड की प्रतिकृति के रूप में देखें।यह हमारे जीवनकाल में ही नहीं अपितु हमारे सितारे सूर्य के समाप्त होने के अरबों वर्षों पश्चात् भी जो जीवित रहेगा वह नाम है ‘शिव’ जी का।वह (कृष्ण छिद्र)ब्लैक होल के रूप में और साथ में अनवरत बहती आकाश गंगा एक अनुपम दृश्य प्रस्तुत करती है। इतने सूक्ष्म ज्ञान को सरल प्रतीक के रूप में जन जन तक पहुँचाया दो भारत वर्ष ही नहीं अपितु शिवलिंग विश्व के कई देशों में भी पाये गये हैं। यह हमारे ऋषि,मुनियों और तपस्वियों की दूरदर्शिता का प्रमाण है कि अंतरिक्ष विज्ञान और पर्यावरण विज्ञान के प्रति सजगता को उन्होंने विभिन्न माध्यमों द्वारा जनमानस तक अपनी बात पहुँचाने का सरल तरीक़ा । खेद इस बात का है कि हम अपने पूर्वजों के ज्ञान को आगे बड़ाने की बजाय दूसरी सभ्यताओं का अंधानुकरण करके अपने ही वृहद ज्ञान को नकार रहे हैं।
अत: शिव अनंत हैं;इनका कोई आदि न कोई अंत है।जब तक ब्रह्मांड है;पृथ्वी रहे न रहे शिव अनादि काल तक रहेंगे।
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राजेश’ललित’