शिमला में उस रोज़
शिमला स्यामलेह से बना है जिसका अर्थ बर्फ से ढका होना है शिमला के रास्ते पर उस रोज़ मैने सुबह पांच बजे आंखे खोली पहाड़ी रास्तों के मध्य कहीं ढलान भरी सड़क थी तो कहीं उठावदार पथरीला रोड़ पर सड़क के दोनों ओर ऊंची शिलाएं और गहरी घाटियां थी जिनमें विशाल घने वृक्षों की पंक्तियां थी सामने की ओर बीस कदम ही चला था कि सड़क दायिनीं ओर मुड़ गयी सहसा छह सात विशाल बंदर मेरे सम्मुख थे मैं सहम गया पर वो तेजी से पेड़ों पर चढ़ गये जैसे ही वो घाटी के लंबे वृक्षों पर जा रहे थे पेड़ का तना दूर तक लहरा जाता उनके जाते ही मैं आगे बढ़ गया प्रकृति का ऐसा अद्भुत मंज़र पहले कल्पना में ही देखा था आकाश सफेद था पर रोशनी अभी जमीं पर नहीं दिखाई दे रही थी मैं खुशी और डर में आगे बढ़ता जा रहा था मई माह में भी सुबह इतनी ठंड पाकर मैं हतप्रभ था पर प्रभु से यही चाहता था कि मेरा श्रम मेरी साधना सफल हो लिहाज़ा ऐसा ही हुआ एक तरफ परीक्षा की उष्णता तो दूसरी ओर शिमला की ठंड मंद मंद बौछारों ने मुझे स्वयं में सिमटने को विवश कर दिया किंतु सब आन्दपूर्वक बीता माल रोड़ का गिरिजाधर और शिमला लायब्रेरी मुझे बेहद पसंद आयी पर आदत न होने के कारण ऊंची चढ़ाई पर चढ़ते जाना थकावट का कारण बना एक एक पल हृदयस्पर्शी था हर दृश्य दर्शनीय था जिन्हें देख आंखे खिल गयी थी लगा मैं कहीं स्वप्न में तो नहीं हूं प्रिय अविनाश का मित्र धर्म सदैव स्मरण रहेगा वो इन यादगार क्षणों का पूर्ण भागीदार है देवदार के लंबे वृक्ष अशोक के लाल पुष्प विशाल शिलाएं व गहरी घाटियां अभी भी वैसे ही याद है काश कुछ दिन और मिल जाते पर आनंद क्षण मात्र भी हो तो हृदय में पैठ बना लेता है…
मनोज शर्मा