शिक्षा से वंचित बालक
किसी समाज की प्रगतिशीलता देखनी है तो यह देखिए कि उस समाज की महिलाएं कितनी शिक्षित है । कानून द्वारा शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित होने के बाद सर्वशिक्षा अभियान , प्रावधानों तथा योजनाओं के बावजूद भी कुछ बच्चे शिक्षा से वंचित रह गये शारीरिक दृष्टि से अक्षम ऐसे शिक्षा विहीन बालको का अनुमान लगाना मुश्किल हैं । ग्रामीण परिवेश में बहुत कम बाधित बालक पढ़ते नजर आते है । अभिभावकों की उदासीनता या बालकों की अपने प्रति हीनता या इन बालकों को कम आंकना यहीं कारण है जिससे ये अक्षम बालक सामान्य बालकों की तरह नहीं पढ़ नहीं पाते ।
अक्सर विधालयों में ये बालक पढ़ते ही नहीं है । इन बालकों के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों न होना , ब्रेल पुस्तकों का न होना , श्रवण यन्त्र न होना , साइन लैंग्वेज का अभाव विधालय में ऐसे बालकों की उपस्थिति के बावजूद भी बाधक है ।
आमतौर पर जो सामान्य बालकों जैसे नहीं होते , जिनके जन्मजात या पश्चातवर्ती कोई शारीरिक व्याधि या अक्षमता होती है उन्हें अशक्त ,विकलांग या विशेष व्यक्ति नाम से संबोधित करते है पर आज एक नया शब्द दिव्यांग प्रयोग में है ।