शिक्षा-वरदान
आज गाँव के स्कूल को रंग बिरंगे तौरण से खूब सजाया जा रहा था । जिला शिक्षा अधिकारी मुनियां स्कूल में आ रहीं थी।
स्कूल में आते ही मुनियां की आँखो के आगे एक चलचित्र घुम गया ।
बरतन माँझते हुए मुनियां सोच रही थी :
” भगवान मेरी कैसी परीक्षा ले रहे है ?
मैं भी तो स्कूल जाती थी , खूब होशियार थी लेकिन भगवान् ने मुझ से पापा को छीन लिया और उसी गम में माँ को लकवा लग गया अब घर तो चलाना ही है इसलिए मुझे ही दूसरों के घर बरतन माँझने पड़ रहे है
थोड़े पैसे खाना मिल जाता है बस ।”
मुनियां घर के बाहर लगे नल पर नीलम अंटी के घर बरतन माँझ रही थी, उसी रास्ते से दिनेश , सुरेश और लक्ष्मी भी स्कूल के लिए निकलते थे ।
बच्चों को भी मुनियां को देख कर बडा दुख होता था , वह सोचते :
” जिस उम्र हम लोग स्कूल जा रहे है , खुशी से घूमते फिरते है यह यहाँ काम कर रही है ।”
एक दिन उन्होंने मुनियां से बात की तब मुनियां ने अपने घर की समस्या उन बच्चों को बताई ।
दिनेश समझदार लड़का था उस ने एक दिन यह बात अपने स्कूल के अध्यापक को बताई । वह बहुत सज्जन थे और बच्चों के भविष्य के लिए चिंता करते थे ।
उन्होंने मुनियां और उसकी मम्मी से बात की ।
मुनियां तो खूब पढ़ लिख कर बड़ी अधिकारी बनना चाहती थी ।
अध्यापक ने मुनियां को स्कूल में प्रवेश दिलाया और छात्रवृत्ति का भी इन्तजाम करवाया जिससे वह पढाई भी करे और उसके घर की जरूरत भी पूरी हो सके ।
अब मैं अनुरोध करूँगा : ” मुनियां मेडम से अपने विचार व्यक्त करें ।”
मुनियां के आगे चल रहा चलचित्र बिखर गया था और उसने बिना झिझक अपनी बात सब को बताई ।
उसने कहा : ” शिक्षा वरदान है कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए भी शिक्षा नहीं छोड़नी चाहिए। ”
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव