शिक्षा एवं आजीविका
शिक्षा मनुष्य की सोच में परिवर्तन एवं बौद्धिक क्षमता के विकास के लिए आवश्यक है ।
शिक्षा मनुष्य के सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
एक लोकतंत्रिक प्रणाली में शिक्षा नागरिकों का मौलिक अधिकार है ।परंतु प्रशासन एवं सामाजिक विसंगतियों के चलते अधिकांश लोग इस शिक्षण अधिकार से वंचित रहते हैं ।
शिक्षा के प्रसार एवं प्रचार के लिए जिम्मेवार संस्थान अपने अंतर्निहित स्वार्थपरता के चलते लाभ कमाने हेतु उपक्रम बनकर रह गए हैं ,
और लोगों का शिक्षा के माध्यम से सामाजिक उत्थान का उद्देश्य कहीं खो सा गया है।
राजनैतिक लाभ प्राप्त करने की भावना से धार्मिक आधार पर लोगों को बांटकर शिक्षा का लाभ समाज के एक विशिष्ट वर्ग को दिया जाता है।
आम आदमी इस प्रकार की परिस्थिति में तथाकथित शिक्षण प्रदाताओं के हाथों की कठपुतली बना किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह जाता है।
उसे अपनी आकांक्षाओं एवं अभिलाषाओं के अनुरूप आजीविका हेतु शिक्षा प्रणाली जो उसकी आर्थिक सामर्थ्य के अनुकूल हो ; का चुनाव करने में कठिनाई होती है , और अधिकांशतः वह गलत सलाह लेकर गलत शिक्षा प्रणाली का चुनाव कर लेता है।
लोगों की अंधाधुंध चूहा दौड़ एवं समूह मनोवृत्ति का प्रभाव भी इस प्रकार के गलत चुनाव करने पर होता है।
पालकों की अपने बच्चों के प्रति उनकी प्रतिभा एवं क्षमता का आकलन किए बिना अपेक्षाएं भी इस प्रकार की गलत निर्णय का मुख्य कारण है।
पालकों के अपने जीवन की अपेक्षित अपूरित आजीविका आकांक्षाओं के सपनों को साकार करने हेतु ;अपनी संतानों पर थोपना भी इस प्रकार के विसंगत चुनाव का कारण बनते हैं।
बच्चों के पालन पोषण एवं उत्तरोत्तर उसके सीखने की क्षमता के विकास में समूह की देखा देखी की मनोवृत्ति भी इस प्रकार के गलत शिक्षा प्रणाली एवं आजीविका चुनाव का मूल कारण बनते हैं।
हर एक बच्चे की सीखने की क्षमता एवं प्रतिभा भिन्न होती है जिसके विभिन्न कारक हो सकते हैं , जैसे अनुवांशिक ,वातावरण ,एवं परिस्थिति जन्य जिनसे एक बच्चा अपने बचपन से प्रभावित होता है ।
अतः बच्चे के विकास के लिए एक अच्छा वातावरण जो उसके सीखने की क्षमता एवं उसकी प्रतिभा के अनुरूप हो , एवं उसके सर्वांगीण अर्थात् शारीरिक एवं मानसिक विकास हेतु उचित संसाधन उपलब्ध कराना आवश्यक है।
जिससे उसकी अंतर्निहित क्षमता का आकलन किया जा सके ; जो उसे भविष्य में अपनी आजीविका का चुनाव करने में सहायक सिद्ध हो।
आधारभूत शिक्षा किसी भी प्रजातंत्र में एक बच्चे का मौलिक अधिकार है।
आजीविका का चुनाव एक महत्वपूर्ण विषय है , जो भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में उसकी क्षमता एवं प्रतिभा और उसके पास उपलब्ध साधनों पर निर्भर रहता है , जो उसे उचित आजीविका का चुनाव करने हेतु साध्य अवसर प्रदान करें।
सही आजीविका के चुनाव हेतु उचित शिक्षा का मार्गदर्शन , एवं प्रगति के पर्याप्त अवसर एवं साधन उपलब्ध कराने में , एक पथप्रदर्शक , शिक्षक एवं सलाहकार की प्रमुख भूमिका होती है ।
आजकल यह प्रचलन है , कि हम किसी विशिष्ट सफल व्यक्ति को अनुकरणीय आदर्श मानकर उसके पद चिन्हों पर चलकर अपनी आजीविका के निर्माण में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं।
हम उस व्यक्ति विशेष की अंतर्निहित प्रतिभा , संघर्ष ,उसके जीवन की परिस्थितियों , एवं उसकी सफलता में उन व्यक्तियों ; जिनका योगदान उस व्यक्ति विशेष को सफल बनाने में रहा है ; से सर्वथा अनभिज्ञ रहते हैं। वर्तमान की परिस्थितियां जिसमें वह व्यक्ति विशेष है ; की अतीत की परिस्थितियों ; जो आज की परिस्थितियों से भिन्न रहीं हैं ; से भी हम अनजान रहते हैं।
अतः इस प्रकार के अनुकरण से हम एक प्रकार अपनी आजीविका का गलत चुनाव कर , अपनी अपेक्षित आकांक्षाओं से वंचित रह सकते हैं।
अतः आजीविका का निर्माण विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है ; जैसे बचपन में प्रतिभा का आकलन , पालन पोषण , एवं उचित प्रकार की शिक्षा के चुनाव में मार्गदर्शन , एवं उन्नति के पर्याप्त अवसर एवं संसाधनों की उपलब्धता इत्यादि।
ये समस्त कारक आजीविका के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं जो जो हर व्यक्ति में भिन्न-भिन्न होते है।
शिक्षित होने के बावजूद गलत आजीविका चुनाव के उदाहरण हो सकते हैं । जिनका मुख्य कारण विषम परिस्थितियां जो किसी व्यक्ति विशेष को जीवन यापन के लिए बाध्य करते हैं ,
या उसके बिना अपनी सोच समझ के भीड़ की मनोवृत्ति से प्रभावित होकर चूहा दौड़ में शामिल होना है।
अतः प्रत्येक महत्वाकांक्षी की प्रतिभा एवं रुझान के अनुरूप उचित मार्गदर्शक एवं सलाहकार के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण करना एवं आकांक्षित आजीविका का चुनाव , एवं उसके विकास के लिए अनुरूप वातावरण का निर्माण एवं प्राप्य अवसर एवं संसाधनों के उपलब्धता आवश्यक है,
जिससे प्रत्येक महत्वाकांक्षी शिक्षित एवं कार्य कुशल होने के बावजूद गलत आजीविका के चुनाव मे न पड़ सके।
आजीविका को आय से जोड़ कर देखना एक गलत धारणा है। निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति में मानसिक संतोष परम आवश्यक है।
हालांकि किसी व्यक्ति विशेष द्वारा चयनित आजीविका उसको जीवन यापन का साधन उपलब्ध कराने एवं सम्माननीय जीवन शैली निर्वाह करने एवं उत्तरोत्तर जीवन में उन्नति के लिए आवश्यक है , परंतु वह धन कमाने हेतु प्रेरित लक्ष्य नहीं होना चाहिए।
आजीविका का मार्ग व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति के अलावा सामाजिक कल्याण भावना से प्रेरित रहना चाहिए , जिससे उसके जीवन एवं उससे जुड़े हुए समस्त हितचिंतकों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सके।