शिक्षक हूँ शिक्षक ही रहूँगा
शिक्षक हूँ शिक्षक ही रहूँगा
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नौसीखिए को सिखा दूँ मै,
परिंदों को बाज बना दूँ मै।
बेसुरों से वो चाहे उलझा हो,
सुरमयी सा साज बना दूँ मै।
कैसी भी कच्ची मिट्टी दे दो,
सुंदर सा आकार बना दूँ मै।
बेशक लोहे का हो पतरा,
कनक की परत मंढा दूँ मै।
अज्ञान के घोर अंधियारे में,
ज्ञान का प्रकाश फैला दूँ मै।
मै तो हूँ आग का अंगारा,
पानी में भी आग लगा दूँ मै।
शिक्षक हूँ शिक्षक ही रहूँगा,
शिष्य को शिखर चढ़ा दूँ मै।
गुरु से बढ़कर कोई न दूजा,
नतमस्तक शीश झुका दूँ मै।
मनसीरत गुरु मक्का मदीना,
चरण कमल पुष्प चढ़ा दूँ मै।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)