शिक्षक दिवस पर दोहे रमेश के
मुश्किल है इस दौर में,…. मानव की पहचान ।
सद्गुरु पाना किस तरह, होगा फिर आसान ।।
गुरु दिखलाए राह जब ,मिले नसीहत ज्ञान ।
खिले उन्ही की सीख से, जीवन का उद्यान ।।
शिक्षक का होता नहीं, खत्म कभी टेलेन्ट ।
और न शिक्षा से कभी, मिले रिटायरमेंट ।।
जाने कैसा दौर है, रही नहीं अब शर्म ।
गुरु चेला दोनों यहाँ ,. भूले अपना धर्म ।।
शिक्षक व्यापारी बने,शिक्षा जब व्यापार ।
सपने तब धनहीन के,…कैसे लें आकार ।।
दिया अंगूठा द्रोण को, ….एकलव्य ने काट ।
रहे न ऐसे शिष्य अब, जिनका ह्रदय विराट।।
रमेश शर्मा.