शासक क्यों बेचैन
शासक क्यों बेचैन
शासक क्यों बेचैन है, सभी शक्तियां पास।
सिंहासन जब भी हिले, भाए न रंग रास।।
शासक नाहीं रह सके, सत्ता से क्षण दूर।
सत्ता सब देती भुला, कर देती मगरूर।।
सत्ता कारण ही रचे, देख कितने प्रपंच।
दे कर भाषण जन ठगे, लूट लिए सब मंच।।
लालच सत्ता का पड़ा, बुलवाता है झूठ।
दिन को रात बता रहे, हरा बताएं ठूंठ।।
सब्जबाग ऐसे दिखा, वादे किए हजार।
सत्ता पर काबिज हुए, जनता अब लाचार।।
कुर्सी शासक की हुई, फर्ज गया सब भूल।
पहले आंखे लाल थी, अब रहता है कूल।।
सिल्ला विनोद सब गए, क्या शासक क्या रंक।
पावन पानी बह गया, खड़ा रह गया पंक।।
-विनोद सिल्ला