शालिग्राम तुलसी कहलाई हूँ
#दिनांक 12/11/2024
#गीत
#शीर्षक:-शालिग्राम तुलसी कहलाई हूँ।
विष्णु की अनुयायी हूँ,
मैं वृन्दा तुलसी माई हूँ।टेक
वरों की माता हूँ,
भाग्य विधाता हूँ।
सुख की दाता हूँ,
मैं रज रक्षक सबकी,
भाग्य भव दाता हूँ ।
हर भवन में आई हूँ,
विष्णु की अनुयायी हूँ
मैं वृन्दा तुलसी माई हूँ।।1।
दैत्य कुल में जन्मी,
हरि कीर्तन की धुनी,
त्रिभुवन बंदन में रमी,
पतितों की हूँ तारिणी।
सत्य सतीत्व को पहनी
लक्ष्मी की परछाई हूँ ।
विष्णु की अनुयायी हूँ
मैं वृन्दा तुलसी माई हूँ।।2।
श्याम वर्ण सुकुमारी,
हरि की अत्यंत प्यारी।
पत्नी जलंधर दुराचारी,
दिव्य कवच धारण किया
देवता पुकारे श्याम हरि,
हरि संग विवाह रचाई हूँ।
विष्णु की अनुयायी हूँ
मैं वृन्दा तुलसी माई हूँ।।3।
बिन मेरे भोग न खाए,
ना कोई नैवेद्य स्वीकारे।
प्रेम से भक्त को तारे,
राख अंकुरित हुई तुलसी,
घर-आँगन तुलसी हिलरे,
शालिग्राम तुलसी कहलाई हूँ।
विष्णु की अनुयायी हूँ
मैं वृन्दा तुलसी माई हूँ।।4।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई